मांगो तुमको क्या चाहिये
पार्वती जी बोली अपन तो जगड़ा करकर आये थे
और आप कस्यपरिशी को वर देने लगे
शिव जी कहने लगे मेरा दर्शन हुआ है तो कुछ ना कुछ तो देना पड़ेगा
पार्वती जी बोलती ऐसा होता है क्या
शंकर भगवान बोले सुन पार्वती ये मेरी रीती है अगर कोई संसार का मनुष्य
मेरे दर्वाजे पर मेरे बंदिर में मेरे दिवाले में आकर अगर एक लोटा जल
रोज चड़ाएगा तो मुझे रोज उसको कुछ ना कुछ देना ही पड़ेगा ये नीती है
जैसे बेटी का बाप
बेटी का बाप क्या है
बेटी का बाप अगर बेटी रोज अपने पिता के घर जाएगी
या बाप अपनी बेटी से मिलने जाएगा
तो कुछ ना कुछ तो उसको देना पड़ेगा ही
भले पिताजी का घर पास में
रोज बेटी आती जाती है भले पास में क्यों
ना मा बोल रही बेटा तो पास में रहे
आज एक काम कर न मैं तरको हलूआ बना के
बेधूंगी सीरा बना के बेधूंगी कभी कुछ कहीगी
बेटा मम्मी मेरे को ज़रूबत नहीं है नहीं मैं तो बहजूंगी
मा ना बाप ना उसका भाव उपपन हो जाती है मैं तो बहजूंगी
अब कोई कहा तो मम्मी मैं बना लूँगी ना सब कर लूँगी ना तु मत बहजूंगी
नहीं मैं तो बहजूंगी चाय और अगर वो सीरा नहीं भेजेगी
तो देखले की बजार में अच्छी सबजी आ रही है बजार में
खरिट के लिए आईगी और वो सबजी भेज देगी भले हरा धना भेज दे
मिर्ची भेज दे पर कुछ ना कुछ भेज दे रोज अगर बेटी अपने
माबाप से मिल रही है तो माबाप उस बेटी को जरूर देंगे
और माबाप अगर बेटी से मिल रहे है तो जरूर देंगे
उससी तरह मेरा शंकर
सब का बाप है, पिता है
जब हम रोज जाते हैं तो वो रोज कुछ ना कुछ हमको देता जाता है
आप शिवजी को क्या मानती हो?
अपना पिता,
अपना बाबुल, अपना बाप,
पिता.