तुम्हारे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे
तुम्हारे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे
तुम्हारे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे
तुम्हारे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे प्रस्तुत्रे
रातको आऊं का न, डर्म ही लागे
दिनको आऊं तो देखे सारी नगरी
रातको आऊं का न, डर्म ही लागे
दिन को आऊ तो देखे सारी नगरी
सखी संग आऊ कान्हा शर्म मोहे लागे
सखी संग आऊ कान्हा शर्म मोहे लागे
अकेली आऊ तो भूल जा तेरी डगरी दू
दूर नगरी बड़े दूर नगरी
धीरे धीरे चलू चलू
तो कमर मोरी लचके
झल्पट चलू तो छलकाई गगरी
धीरे धीरे चलू तो कमर मोरी लचके
झल्पट चलू तो छलकाई गगरी
मेरा कहे प्रभू गिर्धरना
नागर मीरा कहे प्रभू किरधर नागर तुम्रे दरस बिन में आगई बावरी दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
कैसे आऊ मैं तेरी गोकुल नगरी दूर नगरी
बड़ी दूर नगरी
बड़ी दूर नगरी
बड़े दूर नगरिये
बड़े दूर नगरिये