बोला श्यावर राम चंद्र की जै
दूर हुआ अन्धियारा हो गई जगमग राते काली
जगमग राते काली
अरे अब की बार मनाएंगे हम दो दो दिवाली
कुसिया च्छाई अवध नगर में बिछे पुछप है डगर डगर में
लोट के आए है रगुराई संग में लक्षमन शीता माई
ठाक अंधे पर हनुमत आए आए जटाई उभरत भी आए
के काई के संग मात को सल्या भक्तों ने सब देव भुलाए
लोग कुछ गाए नाच रही सब रीमत वाली
लोग कुछ गाए नाच रही सब रीमत वाली
अब की बार मनाएंगे हम दो दो दिवाली
अब की बार मनाएंगे हम दो दो दिवाली
राघव का गुन गान करे हैं बंसी मेरे गिर्धर की
कोपियों के संग राधा गाए गा था मेरे रगवर की
राघव का गुन गान करे हैं बंसी मेरे गिर्धर की
कोपियों के संग राधा गाए गा था मेरे रगवर की
जूम उठे हैं जराग गनियें भकती में हैं मस्त मगनियें
नदियां सारी और ये सागर राम प्रभू के बनें चाक
इतिहास बना ये दिन आज का गाज हुआ है राम राज का
बैठे सादू संत हवन में भूली है कुस्बू आज पवन में
पत्ता पत्ता महेक रहा और खिली है डाली डाली
खिली है डाली डाली
अब की बार मनाएंगे हां दो दो दिवाली
अब की बार मनाऐंगे हंं दो दो दिवाली
अब की बार मनाएंगे हंं दो दो दिवाली
डो दो दिवाली
अब की बार मनाएंगे हंं दो दो दिवाली
बोलो सियावर राम चंद्र की जय