ये हवा तेरी खुश्बू से बहकती है
हर सांस तेरी आदों को छुनती है
जब ही देखा तुझे बिजली सी चमकी
जैसे अन्धेरे में दिया जलता हो
तेरी आँखों के समंदर में दूबने को
दिल तरसता है
ये दिवांगी है या इबादत
तेरे बिना हर बूंद सुनी है विवाज़
तेरे इश्च में जीना मरना है रास तुही मेरी नमास तुही मेरी अजाँ
चाने चाहा मेरी देरी सासों का राग बन जाओ
तेरे नाम पे जिसम फिदा कर दूँ ना मिले तो
आग लग जाएगी ये मुहबत नहीं तो फिर क्या है
तेरी छाओं में गिला हो जाना चाहूँ
तेरी बाहों का सावन बन जाओं जब दूर हुती हूं सेरा छा जाता है
जैसे चांड बिन रातों का अंधेरा घणा
तेरे हाथों की लेहर को पुकरती हूं मैं आभी इंतजार तुट दे मेरे