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Dhundhkari Mrityu Ke Baad Pret Yoni Me Kyu Chala Gaya

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Lời bài hát: Dhundhkari Mrityu Ke Baad Pret Yoni Me Kyu Chala Gaya

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

एक दिन की बात है क्यों कुछ विश्चाओं के मन में विचार आया कि रोज रोज हमें यह तोड़ा तोड़ा दन देता है क्यों ने इसके घर चले और जितना भी दन है एक बार में सब ले लेतो एक दिन सारी की सारी वेश्चाई धुन्दकारी के घर पर पहुची रात के बारा वज़े धुन्दकारी को पकल लिया महाराज और मारने का प्रयास किया लेकिन इतनी जल्दे धुन्दकारी की मृत्यु भी नहीं हो पा रही थीसुज्जी कहते हैं सोनकादी 88,000 विश्वों से कि उसके मुक में जलती हुई अगनी डाली उसका मुक बंद किया फिर भी उसके प्राण नहीं निकल रहते एक साथ सारी की सारी वेश्चाई ने अपना बजन लगाया बल लगाया उस धुन्दकारी का नमो नारायन कर दिया अलभूद बन गया अब भूद तो बन गया आप सांति कैसे मिले वहीं गौकणजी महाराज थोड़े समय बाद जब अपने घर पर आए तो घर पर आने के बाद क्या देखा जब अपना आसन लगा करके भगवान की भक्ति करने लगे तो अनेक प्रकार की आवाजी आने लगे �अनेक प्रकार से हवाई चलने लगी तो गौकणजी नहीं सुचा क्योंकि वो तो ज्ञानी थे बेद पुरुष थे उन्होंने सुचा जरूर घर में कोई ना कोई आत्मा है महाराज गौकणजी महाराज ने पुछा भाईया कौन हो तुम मुझे इस प्रकार परेशान क्योदो आज दुन्दकारी प्रेत यूनि में गया महाराज गौकणजी महाराज ने अनेक उपाय जाने लेकिन कोई ऐसा सटिक उपाय नहीं मिला था क्या करें गुमते गुमते हरी द्वार आंद नामक टट पर पहुचे हैं और सुन्दर व्यास असन तैयार किया और दुन्दककारी को बिठाने के लिए एक श्रप्त गंति का बास लगाया साध गठानों का बास लगाया और दुन्दकारी को कहा कि इस बास के अंदर आकर के बेट जाओ और सुन्दर सिर्मत भागवत महापुरान की कथा का रिश्पान करो महाराज जम पहले दिन की कथा पूर्ण हु�हुई तो पहले ग्रंधि फट गई दूसरे दिन की कतापूरी हुई तो दूसरी ग्रंधि फटी तिसरे दिन की कतापूरी हुईा तिस रिग्मति इस प्रकार से गवण्न माहराज ने साथ जेनों में श्रीमद भगवत महापुराण के मास्तव से अपने भाईकि Mr. Kaalika उद्धार कर दिया है वर्ष वर्ष वर्ष वर्ष अन कि सुंदरसा विमान आया धूंद कारों को बिठायाऔर धूंद कार्य को बिठा करके महाराज परमधा 어디 करके पहुंचने जरा सोचो कि भागवत महापुराण कीसाक्त क्या नहीं कर सकूट उससे प्रेद योणे में पड़े हुए धुंदकारी को सकती है तो क्या हमें नहींअवस्य सकती लेकिन कब जब हमारा भी धुंदकारी के जैसा मन लगेगा तब जब हम भी एक आसन पर बैठेंगे तबजब हमारा भी या हमारे मन में आत्मक कल्यान के बारे में विचार होगा तब भागवत महा पुराण भी हमारा भी आवश्य उद्धार करेगी और हमें भी तार दिया करेगी

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