यदा यदा ही धर्मस्या ज्यानिर्ववति भारता
अभ्योधानम् अधर्मस्या तदात्मानं शजाम्यहं
यदा यदा ही धर्मस्या ज्यानिर्ववति भारता
अभ्योधानम् अधर्मस्या तदात्मानं शजाम्यहं
यह नदी समुंदर गैरा है पानी भी अब क्यों ठैरा है
क्यों चंद्र गुत की चमक नहीं सूरज भी अब कुछ केरा है
इस बूमी पे तेरी रास है तू अलग चमक तू खास है
अब लोटके आजा तू घर को इक तेरी सब को आस है
वो धन्य धन्य हो मा तेरी जिस माने तुझ को जनम दिया था
उसका कभी अपमांद हो जिस माने तुझ को शरण दिया
यदिया वोनि सुम्मी दिया जेमी तुम्हां दूahaha
جس ماں نے تجھ کو شرن دیا
ओ दन्य दन्य
ओ दन्य दन्य
हर जनम शरण हर करम धरम
हर तनमन सब सनातन
अब आच ना आने दू इस पे है जीवन मित्तु सनातन
ओ दन्य दन्य
हर जनम शरण हर करम धरम हर तनमन सब सनातन
अब आच ना आने दू इस पे है जीवन मित्तु सनातन
फिर या के तू दो हाड दे इस आसमान को फाड दे
शैतानों के तू मुँ बंद कर मुगलों को फी से गाड दे
इस भूमी की वो निशानी हर दुषमन से ढकराया
उसे धेक हवा भी काप उठी हर तरफ सनातन चाया
जब मन में उसके क्रोध उठा वो काल बन के मंडराया
रक्त का दान्डव ऐसा है फिर के सर्या नहराया
ओ धन्य धन्य ओ मा तेरी जिसमाने तुझ को जनम दिया
ना उसका कपी अफ़मान हो जिसमाने तुझ को शरण दिया
यदा यदा भनि धर्मस्या याने भवति भारता
अभ्यो नानं अलंमच्यः रदाद्मानं शजाम्यवः ओ धन्य धन्य
ओ धन्य धन्य
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