भक्त जनों पुरातन काल से ही दीपावली पर्व निरंतर पांच दिनों तक मनाया जाता रहा है।
इस पर्व के शुरुवाद कार्तिक मास की कृष्ण पक्षी त्रयोधशी से होती है।
इन पांच दिनों का महत्यव पूजाक्रम इस प्रकार है।
त्रयोधशी भक्त जनों त्रयोधशी के दिन हम धन् तेरस पर्व को मनाते हैं।
धन् तेरस पर्व त्रयोधशी तिथी को होता है।
इस तिथी का दोहरा महत्व है।
क्योंकि इसी दिन समुद्र मन्थन के समय महालक्षमी के साथ आयुरवेद के प्रवर्तक वह भगवान विर्ष्णु के प्रतिरूप भगवान धनवंतरी का प्रादुरभाव हुआ था।
आरोग्य प्राप्ति हेतु जहां धनवंतरी की पूजा की जाती है वहीं पौराणिक दृष्टि से यम के निमित दीपदान भी किया जाता है।
इस दिन दीपदान करने से मृत्यु देव यम प्रसन्न रहते हैं तथा दीपदान करता को अपमृत्यु का भय नहीं रहता।
एक तोटका यह भी है कि घर के मुख्य द्वार के बाहर धान का धेर लगाकर उस पर तेल का दीपक रात भर प्रज्जवलित करने से धन वृद्ध होती है।
और दीपक प्रज्जुलित करने के बाद दीप धान के इस मंत्र का उच्छारन करने से विशेष कृपा होती है।
प्रज्जुलित करने के बाद दीप धान के इस मंत्र का उच्छारन करने से विशेष कृपा होती है।
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