प्रेम से बोलिये श्री कार्थि के भगवान की
प्रिये भक्त जनों असकंध पुरान के अनुसार कार्थिक मास की पुर्णिमा को
भगवान शिव के पुत्र श्री कार्थिक ऐ भगवान ने महा दैत्य तारकासुर का
संघार कर देव रिशी मुनियों तथा तीनों लोकों को नया जीवन प्रदान किया था
अपनी इसी प्रसंदता को व्यक्त करने हेतु रिशी मुनी आदी सभी गंधरवों सहित
सबने ढोल बजाकर निर्चकर मंगल गान किया
जिसे हम देव दिपावली के नाम से जानते हैं
हम देव दिवाली की अतिपावन कथा सनाते हैं
पावन कथा सनाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में दीप जलाते हैं हम कथा सनाते हैं
श्री गनेश्च जी शिव विश्णो जी पूझे जाते हैं हाँ पूझे जाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में जशन मनाते हैं हम कथा सनाते हैं
ये देवों का जोहार तेरे बद्धों का उधार
तेरे बद्धों का उधार ये देवों का जोहार
वज्जरांग एक शक्तिशाली असो था
जोहर शी कश्चप और माता दिती का पुत्र था
उसके शरीर की कठोरता वज्जर के समान थी
इसलिए उसका नाम वज्जरांग रखा गया
वज्जरांग माता दिती के इख्शा के अनुरूप ही था
जोव माता सती का अन्त उसको कोई बिमार सके ना रिशी मुनी भगवन्त
उससे पता था शिवजी तप में लीन हो जाते हैं तपस्या लीन हो जाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में दीप जलाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये देवों का जुहार करिमतों का उजार
करिमतों का उजार ये देवों का जुहार
पारकासर जब बड़ा हुआ तो माता पिता की आग्यां से
मद्वन में जाकर ब्रह्माजी की घोर तपस्या करने लग गया
ब्रह्मधेव प्रकट हो गए और तारकासुर से कहा
माँगो वर्ड तुम्हें क्या चाहिए
तारकासुर ने अमरत्तु का वरदान माँगा
ब्रह्माजी ने कहा अमरत्तु का वरदान प्रकृती के नियमों के विरुद्ध है तब
तारकासुर ने कहा हे भगवन मेरी मृत्यू भगवान शंकर के पुत्र के हाथ मुहो
शक्ती साली बन के तारका करने लगा परिशान
तीन लोक में तारकासुर ने मचा दिया कोहरा
मचा दिया कोहरा
रिशी मुनी गंधर्व आति सब हो गये हैं परिशान
असुर के सन्मुख देवताओं का नहीं रहा है मान
नहीं रहा है मान
अब तो पापी आठो याम ही करता अत्याचार
उसके खौफ के कारण मच गई भद्तों हाँखार
मच गई हांखार
पीड़त देवता फिर तो भद्तों दोड़े आये हैं
आत जोड सब हाल सुनाए हैं
कैसे होगा अंत पापी का जानना चाहते हैं
वो जानना चाहते हैं
देवता इस दिन देवलोक में दीप जलाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये देवों का जोहार
करिबतों का उद्धार
करिबतों का उद्धार ये देवों का जोहार
प्रिये भाक्ति जनों
ये देवों ने ब्रह्माजी की शरन ली और विंत्री करते हुए मदद की भुहार लगाई
तभी ब्रह्माजी ने देवों को बताया कि तारकासुर
को सुष्टि में कोई भी पराजित नहीं कर सकता है
ब्रह्माजी ने बताया भट्तों सुनो लगा कर ध्यान
तारकासुर को मारेगी शिवशक्ती की संताँ
शिवशक्ती की संताँ
बोले ब्रह्माजी शिव भोले तो धुनी रमाए है
शिव की शादी हो जाए ये देवत चाहे है
ये देवत चाहे है
जगाएगा
क्रोधित हो गए अगर तो फिर आफ़त ही आएगा
इधन सती ने परवत राज के घर पर जनम लिया
नारद मुनी ने राजा को सब रहस बता दिया
सब रहस बता दिया
नारद जी शिव का गवरा को तप बतलाते हैं
मां का तप बतलाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में जशन मनाते हैं
वो खुशी मनाते हैं
ये देवों का जुहार करिमतों का उद्धार
प्रिये भक्तों भगवान शिव सब कुछ करते हैं
उनकी इक्षा के विरुद्ध कुछ भी संभव नहीं हैं
महादेव अपनी साधना में लीन हैं इधर देवताओं को चिंता हो रही थी कि अगर
भगवान शिव का विवाह नहीं हुआ तो तारकासुर का मारा जाना संभव नहीं होगा
दूसरी ओर तारकासुर प्रसन्न था कि भगवान शिव
की तपस्या भंग करने की हिमा का कौन कर सकता है
नतो उनकी तपस्या भंग होगी और न उनका विवाह
होगा और न उसकी मिर्ति होगी हर हर महादेव
कामदेव ने जान भोल का भंग है करडाला
शिव ने क्रोध में कामदेव को भस्म है करडाला
किन्टु अंत में भोले तपसे हो गए हैं प्रसन्न
देवों की विन्ती पर शादी के काज संपन
करके शादी भोले गोरा परवत पर आये
समेक चलते भोले नात जी पुत्र रतन है पाए
शिव के पुत्र के जन्म की बात जो सुनी देवता ने
खुशी और आनन्द मनाया है फिर सब देवताओं ने
नाम रखा है कार्टी के ये हम ये बतलाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में दीप जलाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये देवों का जुहार कर्मतों का उधार
भक्वान कार्टी के माता पारवती से अस्तर शस्तर का ज्यान प्राप्त करते हैं
और शिव पारवती अन्ने देवों से शक्तियां प्राप्त करते हैं
देवों के विन्ती पर माता पारवती अपने पुत्र को
तारकासुर का संघार करने रण में भेज देती हैं
देवासुर संग्राम में कार्टी के यन में आये हैं
तारकासुर से धिडगए भक्तों ना घबराए हैं
एक ही पल में तारकासुर का करडाला संघार
दैतिक मृत्यू होते ही फिर होने लगी जैकार
फिर होने लगी जैकार
इंद्रदेव ने इंदासन को फिर से पाया है
दीप जलाए देवों ने और जश्न मनाया है
और जश्न मनाया है
उस दिन से ही देव दिपावली मनती आई है
काशी में महदेव के संग मा दीप जलाई है
मा दीप जलाई है
तार कसुर का पुत्र पिता का बदला चाहते हैं बदला लेना चाहते हैं
जेवता इस दिन देव लोक में जश्न मनाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये देवों का जोहार
करिबतों का उजार
करिबतों का उजार ये देवों का जोहार
पुरान उनके तीनों पुत्र अपने पिता की मुर्त्यू का बदला लेने को आतो थे
उनकी देवताओं से अदावत पुरानी और खान दानी थी जो
क्रमबद्ध शंकला के रूप में वर्णित और जगत विठ्ख्यात है
ती बदले की भावना से उन्होंने वन में जाकर ब्रह्माजी की घोर तपस्चा की
और अपने पूर्वजों के अनुरूप ही अमरत्यों के वर्णान की मांग करते हैं
तार कसुर के तीनों पुत्र फिर वन में आये हैं
ब्रह्माजी की करके तपस्चा भ्यान लगाए हैं
कथन तपस्चा देख ब्रह्माजी वहाँ पे आये हैं
क्या वर चाहत तार कसुर ये वचन सुनाए हैं
तीन पुत्रों ने अमरत्यों का मांगा है वर्णान
ब्रह्माजी ने मना किये बोले ना ये आसान
दूज़ा कोई भी वर मांगो हो देना आसान
सोंच विचार के तीनों बोले सुनो लगा कर ध्यान
क्या बोले है तार कसुर सु चलो बताते हैं
हम वो बतलाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में जशन मनाते हैं हम कता सुनाते हैं
तो अगर मारी मृत्यों ब्रह्मदेव ने कहा तथास्त्र
शर्टों के अनुसार वो तीनों पूरीय पाए हैं
पूरीयां पाकर तीनों दैत्य फिर अतिहर्शाय हैं
तार काच्छ ने सुर्ण पूरी को भक्तों पाया है
तार काच्छ तो रजत पूरी पाकर हरशाया है
पाकर हरशाया है
विद्यून माली को विश्व कर्मालोख पूरी है बनाए
तीनों असुर हित्रिपुरासुर फिर भक्तों है कहलाए
फिर भक्तों है कहलाए
फिर तो तीनों भाईयोंने आतंक मचाया है
सातों लोकों में जाकर तो सबकों ही सताया है सबकों ही सताया है
देवगणों को हारा युद्ध वो उन्हें भगाते हैं हम कता सुनाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में जश्न मनाते हैं हम कता सुनाते हैं
ये देवों का जुहार करिबतों का उजार
करिबतों का उजार ये
देवों का जुहार
कई युद्धों के उपरांथ देव उन्हें पराजिक नहीं कर पाए
क्योंकि तुरिपुरासुरन अपनी करमठता से
ब्रह्मदेव का वर्दान प्राप्त किया था
उनके आशिरवचनों के कारण देव बारंबार पराज़य की ओर अग्र सर थे
अत्तः वो देविश्वर देवाधि देव महादेव के शरणागत हुए
करणा के निधान देवाधि देव परमपिता बर्मिश्वर
महादेव ने उन्हें पुनह युद्ध हेतु प्रिरित करते हुए
उनकी करमठता का ज्यान के साथ अपनी आधी शक्ती भी दिये
किन्टु इस स्रिष्टी में कौन है जो शिव की शक्ती का करण मात्र
भी धारन करने की सामर्थ रखता हो असंभव कोई नहीं हर हर महादेव
सब देवों ने मिलकर त्रिपुरासूर से युद्ध किया
किन्टु यहां के दैत्य ने है फिर उनको भगा दिया
अन्त में देव दभतों शिव की शरण में आये हैं
तार कसुर के पुत्रों की वो बात बताई हैं
बोले शिव मैं आधा बल तुम सबको देता हूँ
कर दो बध उन दुष्टों का ये आशिष देता हूँ
शिव का बल तो देवता भकतों धारन ना कर पाए
फिर संकल्प लिया
भोले ने क्रोध में वो आए
करते हैं जैकार भोले का ये बतलाते हैं
हम सत्य बताते हैं
देवता इस दिन देवलोक में जशन मनाते हैं हम कथा सुनाते हैं
वासुकी बने उस धनुस के डोर इस प्रकार तयार हुआ असंभव रत
हुए असंभव रत पर भतों भोले नाथ सवार
डगमगाया रत हरी आय ले विर्शबनाथ अवतार
ओडे और विर्शब की पीठ पर भोले हुए सवार
द्यत्य की नगरी को चले हैं करने को संधान
करने को संधान
देखा नगर को शिवने पशुपत अस्त्र किया संधान
तीनो पूरियां एकत्रित हो शिवन किया संधान
शिवन किया संधान उस बाण में विश्णू अगनी वायूयम समाये जाते हैं
अब जित नक्षत में शिव जी तीनो पूरियों को पाए
चला दिया है बाण ये तीनो भस्म हो जाते हैं
तीनो भस्म हो जाते
हैं देवता इस दिन देवलोक में दीप जलाते हैं
हम कता सुनाते हैं
ये देवों का जुहार करिबतों का उद्धार
करिबतों का उद्धार
नहीं होता है अता हे मूलपिता आपकी दीओई ध़ुनी से आपकी
ही वंदना करता हूँ इसे सुईकार कर मुझे करतार करो महादेव
त्रिपुरासुर को मार के भोले त्रिपुरारी कहलाए
रुत्र का हिर्दै तो द्रवित हो गया आख आशु टबकाए
आशु गिरे वहाँ रुद्राक्ष के वन उग आते हैं
शिवशंकर के भक्त रुद्राक्ष को गले लगाते हैं
त्रिपुरासुर के अंत बाद फिर देवत हर्षाए
ढीप जला कर सार देवता फिर तो जशन मनाए
त्रिपुरासुर का करी
संघार तो भोलेनात हैं आए
ब्रह्मा विश्णु इंद्र आदि सब जैकार हैं लगाए
देवों के भी देवत भोलेनात कहाते हैं हम कता सनाते हैं
देवता इस दिन देवलोक में जशन मनाते हैं हम कता सनाते हैं
ये देवों का जुहार
करिमतों का उद्धार
करिमतों का उद्धार ये देवों का जुहार
करिमतों का उद्धार ये देवता ने अपनी प्रसंदन्ता
को व्यक्त करने हेतु दीपोच्छव मनाया और गंधर्मों
ने मंगल गान किये अफसराओं ने अपने निर्टिकोषल
के नाम से जाना जानी लगा था।
जो भी शिव की शर्ण में आता भाव तर जाता है
इक्षा फल पाता है जो ये पर्व मनाता है।
जो ये पर्व मनाता है।
मुनेंद्र प्रेम जिसु मिर्शारदा कलम चलाते हैं।
देव सकुनदन तो भकतों ये कथा सुनाते हैं।
प्रेमतनैत्री देवों की जैकार लगाते हैं।
कैला संगीत बनाते हैं।
देवता इस दिन देवलोक में दीप जलाते हैं।
हम कथा सुनाते हैं।
ये देवों का जुहार,
करिमतों का उद्धार।