Nhạc sĩ: Bharat Balavalli
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जय योगीश्वर दत्त दयाल् उजय कजगमा प्रतिपाल्
पत्र्यन सूला खरीरि मीर् प्रगटो जगकारण नीष्चीर्
रंभा हरिहर नू अवतार् शरणागत नू तारण हार् अन्तर्या मीर् सचितसू पहार सत्वुरुद्वि भुजसू मोग्
जोडि अन्पूरा करमाई शान्तिक मंडल करमाई
क्या यच्छ तुर्भुज शर्णुज सार् अनन्त बाहु तू निर्धार्
आव्यो शरणि बाळ अजार् तूठ दिगंबर चार्या प्रार्ण
सूणि अर्जुन केरो सार्
रिज्जो पूर्वे तू साक्षार्
दिधि रिध्धि दिधि अपार्
अन्ते मूति महा पदसार्
कीद्धो आचे गीम विनंब्
तुझ विण मुझने नानंब्
विष्णु शर्मत् विजत्
तार्यो एहेम जम्यो श्राथ्
माते की प्रेम जंभ दैख्
यथि त्रास्या देव कीद्धि
महर्त त्रातत खेम विष्टारि
माया दिति सूत इन्द्र करे
हणाव्यो तूर्वे एम
विनेना कै कै शर्व
कीद्धि वर्ण विकोते सर्व
तोड्यो आयु सुतने काम
कीद्धो एनेते निष्काम
दोध्याय दुने परशुराम
साथ्यदेव प्रह्लान अक्राम
एवि तारी गृपा गाध
केम सुणे नामारु साध
तोड़ अन्तना देख अनन्त
माकर धवच शिष्वनु अन्त
जोई द्विजस्त्रि केरु स्नेह
धयो पूत्र जोई द्विजस्त्रि केरु स्नेह
तोड़ निष्ण्देव स्मर्तुरुघामिकलितार कृपाल्
तार्यो धोमिछेक गमारु
पेटपीड थी तार्यो विक्र
राहणशेध उकार्यो छिप्र
कन्हे केम नापमानिभार
कन्हे केम नापमानिभार
जो आणि गम एक जवान।
शुष्क काश्ठने आण्या पहत्र, धयो केम उदासिन अत्र।
जर जर वन्ध्या एरा स्वप्न, कर्या सफलते सुत्रा कोच्न।
करिंदूर ब्राह्मण नो कोड़, कीधा पूरण एना कोड़।
वन्ध्या भेस गुच्य देव, अन्युता रेद्र तेतत खेव।
जालर खाई रीजो एम, दीधो सुवर्ण घर्ण।
प्राप्भण स्रेनु उत्भर्धार, कीधो सजीवन तेने धार।
पिशाच पेड़ा नीधे दूर, विप्र पुत्र उठाडू शूर।
अरिवि प्रमदत अन्त्य जहाद।
भत्त त्रिविग्रमतात निमेश मात्रे तन्तुक एक।
खोँचाड्यो श्रीशैले देख।
एकी साथे आठ स्वरूप।
धरीदेव बहु रूप अरूप।
सन्तोषानि जहत सुझान।
आपि परचाओ साक्षात।
यवन राजनि ताडि पीड।
जात पातनि तने न छेड।
राम कृष्ण रूपे तेम।
घीधी लिलाओ कई तेम।
पार्या भथरन।
गणी का व्याध।
पशु पंखी पण।
तुझनी साध।
अधमो धारण।
तारू नाम।
कहाता सरेण।
शाषा काम।
आधि व्याधि वो पाधि सर्व।
तले स्मरण मात्र धिसर्व।
मूठ छोट ना लागे जान।
पामे नरस्मर्णे निर्वाण।
लाकण शाकण भेसासूर।
बूत पिशाचो जन्तसूर।
नासे मूठि दैने तूर।
घत्त भून साम।
भड़ता मूठ।
कड़ी धूप गाएजे एम।
तत्त बावनी आस प्रेम।
सुधरे तेना बन्ने लोग।
रहे न तेने क्याई शोग।
दासी सीधी तेरी धाय।
दुख तारे द्रते न जाए।
कावन गुरुवारे नितने हैं।
धरे पाठ बावन सप्रेम।
यथाव काशे अमीत्यनियं।
तेने कदिन दन्देयं।
अनेक रूपे हैं।
पेज अभंग।
भजता नडेन माया रंग।
सहस्न नामे रामी एक।
तत्त दिगंपर असंग छेक।
वन्तु तुझने वारंवार।
वेद श्वास तारा निर्धार।
राके वर्ण वताजा शेष।
तूण राक हुँ भुः पुरुतवेष।
अनुभव तुरुप्ति योदगार।
सुनि खशे ते खाशे मार।
तपसित तत्मसिये देव।
दो दो जय जय श्रीमार।
दो दो जय जय श्रीमार।
आवधूत चिन्तन श्री गुरुदेव दत्त।
अवधूत चिन्तन श्री गुरुदेव दत्त।
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