बोली बोली ज़िन्गर्वाले बावा की ज़ूप
बोली बोली जिन्गर्वाले बावा की जूप
गढنगा जल को उठा के कामर सजा के ग़णगा जल को उठा के
समवन में कवरीया फिल रहा है चिलम से दूरा निकल रहा है
दूपवा निकल गाए
दूपवा निकल गाए
दूपवा निकल गाए
दूपवा निकल गाए
दावग
पर
प्रश्चाद पर प्रश्चाद पर प्रश्चाद
रोमे भवजन गाके सुनाए बाबा के भूआ लो
नाजि सरंचोरो फिर से नाथा तुम जोरो
फिर फिर भवगी में सुन्दिनाए
सावनमे कवरिया ही रहा है चिलमसे भूआ निकले राइ
कामरी साजाके गंगा जलगो उठाके
जलगो उठाके जित्के भगती में सुथ मिल रहा है
सावनमे कवरिया फिल रहा है चिलमसे भूआ निकले रहा है