आईये मेरवानू ये रागनी किस्सा होगा भक्त पूरणमल
मौका उस समय से कि जब वो पूरणमल गुरू की आग्या पाकर के
सुन्द्रादे के दरवाजे विख्षा मांगने के लिए पहुँच जाता है
जैसे ही सुन्द्रादे ने पूरणमल को देखा
हाथ में जो विख्षा लेकर के आई थी वो थाली हाथ से छूट जाती है
पूरणमल की शान और सकल को देखतर के पागल सी हो जाती है
किस प्रकार से उससे प्यार कर बैठती है
और क्या कुछ कहने लगी पूरणमल से इस रागनी को सुनेंगे आप
देहाती रागनी एंडिजे के माध्यम से
इसे गाकर के पेश कर रही है आपकी लाडली कलाकार राधा चोधरी
इस रागनी को लिखा है आदने गुरुजी ब्रजपाल चरोरोर जी ने
आई किस प्रकार से क्या कुछ कहती है
हेर सुन्द्रा दे की नजर संत की
हेर सूरत पे पड़ी
हेर छूट गई शमसीर सामने मूरत सी खडी
सामने मूरत सी खडी
सुन्द्रा देखी नजर संत की सूरत पे पड़ी
छूट गई समसीर सामने मूरत सी खड़ी
ना पैर बढ़े आगेने ना भीक संत के घाली
दगमग ताया कांपे थी गई छूट हाथ से थाई
चहरा भी पड़ गया धोला झड़ गई बदन की लाली
थम गई कदम अदवर में गई चूक वर फल दुनाली
हे रे बहमाता ने रहके ठाली फुरसत में घड़ी
छूट गई समसीर सामने मूरत सी खड़ी
छूट गई समसीर सामने मूरत सी खड़ी
गई सहनु आत्मा सारी साधु सुथरी स्यानी का
गया बैठ पेट में हौला रंग बदल गया राणी का
नीचे ने जुक गया तेगा आज उसमान सखानी का
हे रे तूट्या पनर कमानी का रे
तूट्या पनर कमानी का
रमाने का ये बल हो गई घड़ी
छूट गई शंसीर सामने मूरत सी खड़ी
सामने मूरत सी खड़ी
चहरा भी पड़ गया पेला जनु सूख्या हुया चमन था
सब लूट लिया ईश्वर ने तहले रमणी करमन
था जैसे जीव का पंछी कायाता हुया दमन था
रुक गये पैर अदभर में चर से जो तेज गमन था
हेर जोका तेज पवन का आ गया
जोका तेज पवन का आ गये
कैसी गड़ बड़ी छूट गई
शंसीर सामने मूरत सी खड़ी
शंसीर सामने मूरत सी खड़ी
सामने मूरत सी खड़ी
वात एग हात से गिरगी
जो सत्र सजोगी खागी
इस पर्स बिना ही राणी
इव नजर देख शर्मागी
बनी छूई राणी
मूई सी सुन्द्रा जन हाथ लग्या मुर झागी
ब्रजपाल खड़्या त्वारे पे साथ मैं पूरन मल बैरागी
हेर गाउं चरोरा तोली गागी
गाउं चरोरा तोली गागी
लगा के छड़ी
छूट गई शंसीर सामने
मूरत सी खड़ी सामने
मूरत सी खड़ी
हेर सुन्द्रा देकी
नजर संत की
सूरत पें पड़ी
छूट गई शंसीर सामने
मूरत सी खड़ी सामने
मूरत सी खड़ी