भगतों
आगुन का मश्त महीना आ जाता है
और वो सिरी बाला जी महराज की भवतनी अपने पती से कहती है कि
स्वामे अग की बार मेरा मन ऐसा कर रहा है कि मैं
सिरी बाला जी महराज की द्वारे भी जाकर कें भूली खेलू
रंगों से बाबा को रंग बिरंगे रंगों से बाबा के ऊपर
भूलालो की बरशार करूं और अपने पती से अपने स्वामे से कैसे
विन्ति करती है इस विजन की मादम से रखता हूं सुनिये कैसे
उ
चले होडी खेल बरतारे भरतारे सिरी बाला जी के मेंडे मैं
चले होडी खेल बरतारे भरतारे सिरी बाला जी के मेंडे मैं
वो रंग सिंदोरी भरसावेंगे जैजै दूमे उड़े भगताथावेंगे
आवे लाखों नर
नर नर सिरी बाला जी के मेंडे मैं
चले होडी खेल बरतारे भरतारे सिरी बाला जी के मेंडे मैं
प्राज़ावाद प्राज़ावाद
वोर कहते हैं कि स्वामी
जब बिच्ची वार रोषनी मेरे प्रोजसी गई थी तो बाबा के द्वार पे
जब उसने होड़ी खिल ली जबसे उसके घर में आननद मोझ है वहार है
मैं आपसे रिक्वेश्ट करती हूँ कि आपवी मेरे साथ
में चलो हमारे घर की सभी संकत कर जाएंगे कैसे
जहोंगी गली महराज की
ज़िन्दर भजा चड़ाओए है बालाहाजी की जोत जगाओए है
प्रस्तार बरतार
शिर्बालाजी के मेरे में चलो होड़ी खिल बरतार शिर्बालाजी के मेरे में
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