चली याँ ही भाया हम भुजपुरी गयका सिश्ति भाड़ती
चहिट के महिना आ गयी बाई
एग ओ औरक के पती परगेश में बाई
और अती बड़ा भी ओग में भी आये सेलेस भाया
एभी भाया योगेंदर जी तनी ध्यान से सुने के बाई
अका कोहतीया अका उन्हा भाव में कोहतीया
सुने
कोईली अजब जब मां के भगीया
चचचण ता पारानू एराम
चचचण ता पारानू एराम
कहवाना कोलोंस लिखायी हमर भोगीया
पूरा वही आते राती के खिड़े किया राती के खिड़े किया हो