कि व्रम्भाजी कहते हैं कि महाप्रदा काल में केवल-सद्रंब की सत्ता का प्रतिपाधन उस
समय निर्गुण निराकार देखिए भगवां सिव को निर्गुण निराकार भी कहा है अरजु निराकार यह कहने पहले
कह चुका हूं भक्वान शिव को निराकार कोई कमिया करकार को मानते है तो तय सुविष्णिंग आकार न इसको कोई
आकार है यह परमात्मा सुझी निर्गुण निराकार हो और सगुन साकार में देखते हैं तो वह जटाधारी माते पर चंद्रमा
मां सिर्म गंगा है आत्मट डंरू है सूत हेलो है है और कहते हैं आरे जो हम बोलते हैं ना जो हमारी व्हाथा
यह सब कहां से निकली है यह सब्सक्राइब है यहहसंत पहास से निकले भगवायां शिव कि जो दमरु है लुट महाराज
से और जो संस्कृत भाषा है यह देव बानी है और यह सब भाषाओं की जननी है यह सब कहां से आया भगवान सिव की
डम रूप से आया है कि जब पढ़ाया जाता है गुरुकुल में प्रार्यंब होता है तो वह सर्वपृत्तम जो सिव जी की
डम रूप से निकले 14 सूत्र है वह सूत्र पढ़ाए जाए आप इन सूत्रों को सुनेंगे तो आपको हसी आई है
कि सुनाओं क्या है आईयोन रिल रिक रिक ए आउम आई आउच हाय वरट लण यम गणनम जब गण दस जब गण दस खाफा छाँठा था छाँठा था
साफ कपड़ ससर हल इति माहेश्वराणी सूत्र ने नादि संघ्यारधानी एसा मंत्या इतहा माहेश्वर की डम रूप से
निकले हुए यह 14 सूत्र है इन्हीं से फिर सब रचना भाई भगवाईम शिव के हाथ में डम रूप है उस डम रूप से
हुआ था नहीं वह डम रूप ब्यार है हेलो तो भगवाईम शिव की डम रूप देववाणी भाषा संस्रथ की जनना
सभी भाषाओं की जननी भाषा संस्रथ है
हाथ में तरसूल है तृताप बिनासक तरसूल गहते हैं उसको आदि दाइविक
दाइविक भवतिक तापात तीनों ताप्पों को बिनास करने वाला वह तरसूल है
भगवां सदाप सिव के द्वारा आप शुरुखा भूता सक्ति अन्भिका का प्रकट्रिय करना उन दोनों के द्वारा अध उत्तम
स्थित्र कासी आनंदवन का प्रादर्भाव सिव के बामांगम से परंपुरुष विश्णु का आविरभाव था उनके सकास से प्रकृत
तत्तों को क्रमसा उत्पत्ति के लिए भगवान सिव जी को कहा है कि ब्रह्मा जी कहते हैं देवरसी
चीनिक आफ जब यहां पर शोनकादिक रिशियों को सरिशुत्य लिए महाराज्य कहते हैं भगवान विश्णु की नावी
से कमल का प्रादुर्भाव हुआ यह कैसे हुआ यह भगवान सिव की अक्षा से हुआ स्रिखा सब्सक्राइब और प्रधान हुआ श्र comics
महाजी प्रगट भए कमल नाब के उद्गम का पता लगाने में असमर्थ हो गए बहुत प्रकार जब किया तब किया उसके
पश्चात्र महाराज स्री हरी का उन्हें दर्शन हुआ और स्री हरी ने दर्शन दिया उसके बाद जब विवाद हुआ दोनों
को भगवान विश्व भगवान का दोनों के विवाद में भगवान Sibah एक अगणि इस्तम के रूप में प्रगट हुए एक्था
में हम और आप सभी सुन चुके boat तब के रूप में भगवान प्रगट हुए और उसके और छोड़ का पता लगाने भगवान नारेण
कौन पता लगा सकता है प्यारे एक मेरा महादेव ही ऐसा है मेरे बाबा भोरेनाथ बसुपतिनाथ ऐसे हैं
इनके महाराज ना आदि का पता है ना अंत का पता है कोई नहीं लगा सकता इसका पता इसलिए भगवान ब्रह्मा को
भगवान विष्णू को मेरे महादेव के वह समय सब्द स्वरूप का दर्शन हुआ है अ कि सब्द स्रूप से सब्दमाय सरीज का
दर्शन कराया है और इधर लिखा है भारत शुद्ध महाराज सुनकात किसीयों को कहते हैं यह ब्रह्मा जी कहने नारद
भगवान मिश्णू के द्वारा की हुई इस्तुति जो भगवान मिश्णू ने इस्तुति करी है उस इस्तुति को सुनकर करुणा निधान भगवान महेश्वर बड़े प्रसन्न हुए और उमा देवी के साथ सहसा वहाँ पर प्रकट हो गए पहले अगनी सरूप में आये अ�
बुलियो मापती महा देवा की जै हो