आगरा
आज महेर की च्छाओं में पड़ी दो बेन हैं
पिक्चे के लिए लेट हुझा है आ रही बाबा
चलो भेया चलो भेया
दोनों तन से अलग और मन से एग
वो देख हंस के साथ तव्वा बैठा है
एग क्या बोले तु
समाश को मनसूर नहीं
जब तक इस घर में यह हंस नहीं है न कौशल्या
तेरी बेटी का रिष्टा नहीं होले कहा
क्या एक की खूद सूर्फी
दूसरी की दुश्वन बन जाएगे
बंदरिया के गले में मौतियो का हार
कब बदलेगा समाश का नजरिया
जिसे आयनी नहीं ठुकरा दिया हो
उसे कौन अपनाएगा
वो आप किसे बनाएगे
अपनी बाहू