आख तीसरी वास है काशी
महादेव कोई कहे के लाशी
नाम से जिनके दुनिया कापे
अंतनात दी वो अविनाशी
अंतनात दी वो अविनाशी
जिनकी जटा से वैधी गंगा
जिनके नाम से होता चंगा
जिनके मथे पे चंदर्मा
वो वोलेनात है प्यारे
वो वोले हरी द्वार में आरे
कावड नील कंट ते ठारे
नारे बंबं के लाके
सावन बारिश में नारे
रेल की धाला तगडे बागे
पाऊं में च्छाले फिर भी नाचे
दाली घ Jab
काल भी उसका क्या कर लेगा भक्त जो महकाल
का पृत्वी का संचालत यो ही अंत इस संसार का
कोई आधिनात,
कोई दिनानात,
कोई महादेव इनको कहता चाहे कितनी भी पर ले आजाए अन्याए न ये सहता
जिनकी पारवती है प्यारी,
जिनकी नंधी है सवारी,
जिनकी बुता गेल यारी,
वो भोले नात है प्यारे
भोले हरी द्वार ने आरे,
कावड नील कट ते ठारे,
नारे बंबं के लाके,
सावन बारिश में नारे
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