हमरे मनवा के अगिया बुछावे के पड़ई
दुखवातों से कहल न जाला बीना
नईहर से जले दी भी जावे के पड़ी
अब के मुर्गवन वापर आवे के पड़ी
बुजब याता ऐसा जनवा झर झर बरसे लाने अनवा झर झर
जले दी से डोलिया माँ आवे के पड़ी
अब के मुर्गवन वापर आवे के पड़ी
बोजी माना मोरी बतिया बोजी कटे ना ही रतिया बोजी
अब के मुर्गवन वापर आवे के पड़ी
हमरे मनवा के आगिया बोजावे के पड़ी