Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
जब जल करभसम होई,
तो भगवान शंकर को
क्रोध आ जाया,
कि
भगवान शंकर की आखों में अश्रू आ रहे हैं,
और अश्रू इसलें नहीं आ रहे हैं,
कि माता सती ने प्रान त्यागे,
माता सती के प्रान चले गए,
भगवान शंकर को आशू इस बात क्या रहे हैं,
कि माता सती ने प्रान तो त्यागे, और किसमे त्यागे,
हवन कुण्ड में,
और भगवान कहते हैं,
कि कभी किसी के हवन के बीच में, कभी कोई साथ,
भगवान का कप चल रहा है,
भगवान की साधरन चल रही है,
उसके बीच में कभी हमें कुछ
गडबण नहीं करने, कभी उसमें हमें दखल नहीं देना,
क्योंकि
जब हम भगवान के कार्य में
दखल देते हैं, तो भगवान
फिर आपकी नहीं सुनता,
भगवान फिर क्या करेगा,
भगवान कहते हैं कि भलि शिवपराण से नहीं डरना,
मद डरो,
अपने माता पिता से नहीं डरना,
मद डरो,
भगवान से नहीं डरना, मद डरो,
लेकिन अपने कर्म से जरूर डरना,
क्योंकि कर्म का भोग तो परमार्थमा को भी भोगना पड़ता है,
कर्म से जरूर डरना
भगवान कुण्ड में,
अब आपको अगला जनम कोयल का लेना पड़ेगा,
काई का लेना पड़ेगा,
कोयल,
और
आपको कोयल का जनम लेना पड़ेगा,
अब माता सत्ती कहती, कि मैं आपकी पतनी हूँ,
और आप मुझे कोयल का जनम दे रहे हो,
बगवान शंकर ने कहा कि,
कर्म का भोग तो सबको भोगना पड़ता है,
और आपको भोगना पड़ेगा,
क्योंकि आपने
वो जो शुब कार्य चल रहा था,
भगवान का कार्य चल रहा था,
उसमें आपने जाकर प्रान त्यागे,
उसमें आपने विलम्ब दिया,
तो आपको उसका भोग तो भोगना पड़ेगा.
तो माता सती का जनम कोयल के रूपमे हुआ,
लेकिन माता सती ने पूछा कि मैं कोयल के रूपमे में जनम तो ले लिया,
लेकिन मुझे वापस आपको पाना है,
तो कैसे पाऊँगी?
कहा कि जब कोकीला अधिक मास पड़ेगा,
तब तुम मेरा भजन करना,
और मैं तुम्हे अपने पती के रूप में वापस मिलूं।
अगर आया श्यावाद पर पड़ेगा,
तो पूछा कि मैं कोयल के रूपमे में जनम तो ले लिया,
लेकिन मुझे वापस आपको पाना है,
तो कैसे पाऊँगी?
पग़वाशंकर में दिहान लगाया,
कोयल के रूपमे में और माता सती को उस योणी से मुक्ति मिली।
और जेसे ही मुक्ति मिली।