वन्सी विभूसित करा नवनीर दाभा पीतांबरादरुन विम्बफलादरोस्था
बगवान वन्सी में जो सुशोभित होते हैं पूर्णेंदु सुन्दर मुखात अरविंद्रनेत्रात कृष्णात परम्किमपितत्तमहं नजाजात
ऐसे भगवान सकृष्ण जो वन्सी के साथ सुशोभित होते हैं वो स्वराट हैं और कहा तेने व्रम्म रदाय आदि कवये व्रम्मने व्रम्मानम विश्मापयतुम वत्सवस्त पालादी रूपम तेने विस्तारित वान।
जिनों ने ब्रज में ऐसी ऐसी लीलाएं की कि महाराज सामान जीव की तो कहे ही क्या व्रम्मा जी जैसे भी चार मुख वाले चार घोपडी वाले भी चक्कर में खाते हैं।
भागबान है और ब्रजबासियों की लीलाओं में ऐसे ब्यामोहित हुए कि ब्रजबासियों की जूठन घाने में सोचा ये भगबान नहीं। कात्हमें सुनोगे आप।
और उन भगवान को जो भ्रम्मा भी नहीं समझ पाते
और भ्रम्मा जी की तो कहे ही क्या कहते हैं
मुहीयन्ति यद सूरयाह वलदेवा दयूपी
मुहीयन्ति मुहं प्राप्न वन्ति
कहा दावु दयाल भी जिनके लिलाओं को नहीं जान पाते
जाते भगवान ने एक वर्ष तक ग्वालवाल बन करके बछड़ा बन करके पूरे वृद्ध में लीला की और दाऊ भाईया को भी
पता नहीं चल ऐसे भगवान सृकृष्ण तेजो वारी मृदाम यथा विनिमयो यत्रत्रिशर्गो मृषा कैसी है उनकी
लीला कहते हैं कि जब मुर्ली मन ओहर माधव मुर्ली भजाते है न तो मुर्ली बाधन का वीरूबा घंटा जब समय
होता है वह रूके जब श्वर निकलते हैं उन स्वरों के कारण कहार दिन इस प्रकृति का जो नियम चक्र है यह जो वारी
प्रपंच का यह जो संसार है चित जल पावक गगन शमीरा इनके जो अपने-अपने गुण है वह गुणों को भूल जाते हैं
कैसे कहा जल का धर्म है बहना और महाराज पासान का धर्म है स्थायत रूप से कठोर होकर के विराजे रहना है
परंतु जब बेड़ू बादन होता है तो बिल्कुल उल्टा हो जाता है महाराज पासान आद्रे द्रवत्त्वं यामुना या काठिनक्त्त्वं
जब घगवान विड़ू बजाते हैं उस समय यह मुहणा की जब लेरे किलोल करती हुई लहराती हुई चलती हैं
और वेड़ूबबादन होता है तो समस्त यमुना के लेहरे इसतब्द हो जाती है रुक जाते हैं उस थान पर जल का प्रभाह
सब्द होकर सांत होकर खड़ा हो जाता है। आपने ऐसा कभी सुना भी नहीं होगा कि पानी बैता हुआ खड़ा हो गया माराज। रूक गया। सब्द हो गया। हलचल नहीं है। और जो पासान हैं, जो सिलाएं हैं, कहां की, गोवर्धन की, गिराज, धरण की जो सिलाखंड ह
है ना, वो द्रवित हो जाते हैं। वेनु का वादन सुनकर के पिघलने लग जाते हैं। पासान आद्रेद्रमत्त्वं द्रवित हो जाते हैं माराज।
ऐसे भगवान तेजो वारी मृदाम यथा विनिमयों यत्रत्रिशर्गो उमृषा। कहते हैं,
श्री कृष्ण च Maarithya रहती श्रगह अमृषा। भगवान मी श्री कृष्ण का चरिष्ट्र अमृित जैसा है।
क्योंकि गोपियां भी तो कहती हैं गोपियां गीत में तब कथा अमृतम भगवान के चरित्र भगवान की कथाएं
अमृत है और इनका गुण क्या है जो कथा रूपी अमृत का पान करता है स्रवण मंगलम सुनते ही स्रवण करते ही
मंगलम उसका मंगल हो जाता है
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật