आना यद्य पवीत है उसमें पकड़ करके किसी को ठांग दो तो
दशकों तक लटका रह जाएगा
इतना जवरजस्त
खर चलिए जो भी वो
सवा मन जनेव रोष तौल करके उसके बाद खाना खाता था
अब जो समझना चाहते हैं वो इससे ही समझ जाएंगे
यह खाना खाने की परमपरा बंद कर दें हम
करना चाहिए न
तो क्या बोलेंगे आज से
प्रसाद कौन पाता है
जो भगवान को भोग लगाता वो प्रसाद पाता
तो जो भगवान को भोग नहीं लगाया वो
वो खा ही रहा है
इसलिए भगवान को भोग लगाए बिना कुछ नहीं करना कहेंगे वस्त्र नया वस्त्र लेकर आइए भगवान के चरणों
कीजिए और प्रसाद शुरुप धारण कीजिए एक बार एक बच्चे ने कहा था ठीक है क्लॉस तो कर सकते हैं भगवान का
प्रसाद जूता थोड़ी भगवान के चरणों में रखेंगे बिल्कुल ठीक बार नहीं रखेंगे क्यों लुकार में हमने भी ट्राय
कि हमारे से पहले दसों लोगों ने ट्राय किया उसे पैर में पहने वाली वस्तु भगवान के लिए कैसे अर्पण हो सकता है
कि जिस वस्तु से बना है कह लीजिए उसका कंटेंट जो है प्लास्टिक का है रबर का है चमड़े का तो चमड़े का चलंदी
है
बनाने �ć भय बात क्षंड़ी कि भगवान किधों कि सब कलाओं में यह भी आता 64 कलाएं जो हैं 65 जो यह भी आका भी
से भगवान का दिया हुआ है सब को शक्ति दिआवी भगवान कि ऐड इस तरह से भगवान का दिया हुआ हम मान लें Looks भगवान को पर साधी कहला
अब जिस बच्चे को माता पिता का संसकार है वही कहेगा इस तरह की बात
कि जूता थोड़ी भगवान के आगे रखा जा सकता है
जिसको संसकार नहीं है वो कुछ और भी कह सकता है
इसलिए सबकुछ करता पर भगवान में है
है यह जूटा यह कपड़ा यह खानपान यह सब कुछ शरीर के निर्वाह जीवन के निर्वाह के लिए और जीवन का निर्वाह
भगवान के लिए शुमना रायण भगवान कीजिए ने कि आगे सूत जी बता रहे हैं
शोनकारी रिशियों से कह रहे हैं कि श्रीमत भागवत महापुराण की रचना वेद अव्यास जी ने की थी
भगवान के 24 अवतारों में से वेद अव्यास जी का उतार होता है. जीवात्माओं के लिए इन्होंने कठिनता देखी वेद की तो वेद का विस्तार किया है इसलिए इनको वेद अव्यास कहते हैं.
कृष्ण द्विपायन यह वेदा व्यास हुए फिर भी कठिंता लगी इनको जीवात्माओं के लिए तो महाभारत दिवद्रंत को रचा
जिसमें एक लाख शुरू होते हैं
सत्रा पुराण भी बनाए सुनिये का ध्यान से सत्रा पुराण बनाए और जिन जिन देवताओं के नाम से पुराण बने
उनकी प्रशंसा उनका महत्व वो क्या प्रदान करते हैं ये सबकुछ बता दिया इने वेदा व्यास हुए
सुन रहे हैं ना
� revolver यह सब कुछ बता दिए कि तिए संशेए नहीं रखना मन में यह निवाजण सबसे कर रहे हैं यहां जो समक्षत सुन रहे हैं वह
भी और जो ऑनलाइन श्रवण करने है दूर बैठकर कि वह भी अवध भाग में सुननेंगे है कि यह संशे नहीं रखना कि
यह सब शास्त्र में कहा नहीं गया है
अपने मन से कह रहा है
जिस दिन अपने मन से कहने लग जाएंगे
वोसे जिन संप्रदाय नाश के भागी बनेंगे
संप्रदाय नाश हो गया है
वहाँ पाप हमसे हो जाएगा
जिस संप्रदाय से
एक संप्रदाय का और स्किल बताचुके, जिस संप्रदाय से सबकुछ प्राप्त है।
उसके अतृक्त एकतोर क्या है, कुछ भी नहीं।
तो यह संप्रदाय व्यदः व्याष्ट्री का, भिज़ास� Gratidās का, यह संप्रदाय भग्वान का,
जिन जिन देवताओं के नाम से अटवा इन वेद अभ्यास दिके
मन में भावना यही है कि जीवात्माओं का कल्याम कैसे है
अब कल्याम में कई विभाग है
लोग में रह रहे हैं इस संसार में रह रहे है
इसमें सबप्रकार का शुख चाहिये
चाहिये न बोलीए न नहीं चाहिये
हैं जो कहेरा नहीं चाहिए वो जूत बोल रहा है
आपके मन में आ रहा होगा हमको नहीं चाहिये चाहिये
बिलकुल चाहिये यदि कहे दे कि नहीं चाहिये तो जूती बात है
अभी यहां आप थोड़ी दे पंखा बंद हो जाए
कहेंगे बाई गर्मी लग रही चालू का रुख सुख चाहिए
सेर पे छाया भी चाहिए
भोजन के लिए अन्न भी चाहिए
पीने के लिए जल भी चाहिए
पहनने के लिए कपड़ा भी चाहिए
हर एक वस्तु जो मनुष्री को चाहिए वो हमको भी चाहिए
तो क्या नहीं चाहिए सुनिश्व यह सब को चाहिए
तो अलग अलग प्रकार का सुख
लेकिन उब जाते हैं नकारे
यह घर बुराना हो गया है
अब चेंज चाहिए
मुली ये दिवाल हटाओ इधर कर दो
सोफा इस साइड रख देते हैं बैट इधर लग जाएगा
दिवार के कलर्स चेंज हो जाएगे
करते न
बैट चीट
हमारा पहला उड़ावा हर एक चेंज
यह परिवर्तन कर रहे हैं
क्यों
उब रहें मन उब रहा है
कपड़े जल्दी नष्ट होते हैं
भवन घर जल्दी नष्ट नहीं होता
लंबे समय तक रहता है
लेकिन मन बदलता रहता है
उसको दूसरा कुछ चाहिए
उस सुख से
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật