पेनाकाब जेरे साथ अंदेराब पेरी साथ
गश्मुगश ये कफस पेराजाब इस तेराब
खौफ रुखी घटाओं में गबगबाती आहों में
सहरी अंधेरी शाम मौकर की पनाहों में
धर्रापी विकाहे भी जहनी सहरी सी रही
जिन्दा लाशों की आवाज इन सहरों में थी बूझुटी
खुदूं देवाहिशों की ये धर्गने हैं बेपना
इन प्रिशारों में फ़से हैं लोहि सारे बेगुना
पहली रेख अंजबे शाही, ये लगू उस दिल कवाही, अंगलों में जग रही है, जीवों से भरी सुराही, इन सदाओं में कही, इस अलग सा आ गई, पेही जाब सवालों की है, पेही जाब पिश्क की, पिश्क की है प्वार, तो सलासिलों में क्यूं रहे, रोजने सिंदा
ताको तुरे आपके शोंदे भी बढ़े जाए, कौन जी पादे कुम सो, है तुम्हा
प्रस्तुत्र प्रस्तुत्र
प्रस्तुत्र प्रस्तुत्र
प्रस्तुत्र