रात कह रही है
तू कहाँ छुपा है
मेरी तनहाईयोंने तुझे फिर पुकारा है
हवा भी रुखे
तेरा पता पूछती
पर तू बेखबर है मेरी दस्तां से
बेखबर
तू रहां मुझसे बेखबर
दिल ये तूट के भी तेरा ही अंतिजार कर
शाम धलती गई बाते मिटती गई
पर एक मैं हूँ जो तेरा ही नाम लिये चले
मिट्ती की खुश्बू भी अब फीकी सी लगती तेरी आदों का मौसम अब भी यही था
पंद भी कह रहा क्यों खामोश हूँ मैं
क्या बताऊं उसे तू ही मेरी रोशनी था
काश एक बार तू मद के देखे
मेरी आँखों में वो कहानी लिगे
जो हमने चाहा था
जो हमने देखा था
पिर से किसी
रात बिखरे
बेखबर
दू रहा मुझसे बेखबर
दिल ये तूट के भी तेरा ही इंतिजार कर
शाम धलती गई बाते मिटती गई
पर एक मैं हूँ जो तेरा ही नाम लिये चले