जै जै वैधनात शिवशंकर बोले तृपुरारी
जो तिरलिंग स्वरूप है पावन जै भव भयाहारी
ओम हर हर हर महाने
सावन में गंगाजर लेके भक्त यहाँ आते
सभी कामणा पूरी हो
सभी कामणा पूरी हो
मनवाँ छित फल पाते
ओम हर हर हर महाने
शक्ति पीठ है सिर्ध यहाँ पे सती कर दे अभिराजे
मा सती कर दे अभिराजे
शिवशंकर बोले तृपुरारी
कर महाँ देव यहाँ पे
शिवशंकर महाँ देव
लिंग रूप में साजू
ओम हर हर हर महाँ देव
पैदनाथ डमरू धारे के भक्ति है फल दारे
प्रभु की भक्ति है फल दारे
जो भी शरण में आता
उसके शम्भू सदा सहाई
ओम हर हर हर महाँ देव
पंच शून का शुब दर्शन संताप ताप को हरता
संताप ताप हरता
रक्षा करते वैद्यनाथ
भक्तों के पालन करता
ओम हर हर हर महाँ देव
बैद्नात शिव आत्मलिंग का जो भी ध्यान दरे
प्रभु का जो भी ध्यान दरे
जीवन धन्य हो जाए
और जग में प्रभु का जो भी ध्यान दरे
वैद्यनाथ का मंगर दर्शन सभी पाप हर लेता
प्रभु सभी पाप हरता
संताप को हरता
सुख शान्ति आति जीवन में
मन निर्मल कर देता
होम हर हर हर महाँ देव
सुबह शाम जो करे आरते
दुख मिठते सारे
उसके दुख मिठते सारे
यश्वै भव सम्मान मिले
भर जाते भंडारे
होम हर हर हर महाँ देव
जै जै है
जो तिर लिंग सरूप है पावण जैभव भयहारी।
ओ भर्हर हर्माः जैभव भयहारी।
ओ भर्हर हर्माः जैभव भयहारी।