Nhạc sĩ: Traditional
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अत्व गोपाल सहस्र नाम प्रारभिते।
गोपाल शब्द परमात्मा का परियाय है।
समस्त आत्माओं को निर्बन,
निश्पाप,
निरोग बनाकर
मुप्ति प्रदान करना ही
गोपाल की अनुपम लीला है।
वन्शीवट,
यमुना तट या एकांत में
पिपल के व्रिक्ष के नीचे बैठ कर
जो भगत
गोपाल नाम का जाप करता है
उसको एक सहस्र अश्वमेद का फल अनयास ही मिल जाता है।
सम्मोहन,
स्थंभन,
मारण अत्वा उचाटन तंत्रों से गरस्त व्यक्ति को
तदकाल छुटकारा मिल जाता है।
वो जिस वस्तु,
स्थिति या बद की इच्छा करता है,
नटखट लीलाधारी,
कुञ्जविहारी,
भगवान श्री गोपाल तदकाल उसकी मनोकामनाई पून कर देते हैं।
सुन्दर कैलाश के परवच्छिकर पर,
जब शंकर भगवान ध्यान समाधी से उठे,
तो गौरी ने अत्यंत आदर्सी प्रश्न पूछा,
प्रभु,
आप तो स्वयम भू हैं,
अखिल ब्रह्मान्ड के सृष्टी पालन और संहार के कर्ता हैं,
तो आप किसकी उपासना करते हैं।
तब भगवान शंकर ने
अत्यंत प्रेम्सी गौरी को बताया,
प्रिय,
गोपाल ही संसार के कारणों के कारण है,
वो ही परम ज्योती है,
जिससे सब ज्योती मान है,
मैं उनहीं का ध्यान करता हूँ।
यदि किसी व्यक्ति को संसारिक त्रिवीधी
तापों एवं कर्म जन्ने श्रापों से बचना हूँ,
तो गोपाल सहस्र नाम का जाप करें।
इसके सुनने यब पढ़ने मातर से
व्यक्ति संसारिक समस्त सुखों का भोगता बनकर सौ
वर्षों तक जीता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।
इसके सामोहीक जाप से महमारी,
दुरभिक्ष,
सृष्टी भहे कभी व्यापता नहीं है।
संसार में सुख सम्रिधी एवं शक्ती प्राप्त हो जाती है।
ओम् श्री गोपाल परमात्मने नमः।