आदि अदली, अजर अचिन्त, उरुष मुरेंद्र, करुणामे, कबीर, सुरती योग, संतायन, धनी धर्मदास, चूरामनी नाम, सुधर्शन नाम, कुलपती नाम, प्रबोध गुरुबाला पीर, केवल नाम, अमोल नाम, सुरती सनेही नाम, हक नाम, पाक नाम, प्रकट नानाम, धीरज नाम, उग्र नाम, दया नाम की वंश, प्यालीस की दया, आईए, अमर मूल शिबोध सागर आरम करें, धर्मदास विनती करें, ए गुरुप पानि धाने, मित्यु गुढापा मिटा दो, दे दो पद निर्वाने,तीन लोग में सब मरें, अमर नहीं है कोई, इसे कौन जीतेगा, निश्दिन संशैमोएं,जग के जीव दुखी हैं, सुन लो हे करतारें,किरपा करके दास पे मिटाओं कष्ट अपारें, तब सद्गुरु ने कहा, धर्मदास मुफ्ती आधेन, तुम वेह कथा सुनो प्रवीन,जो चित में प्रभु नाम बसाता, मृत्यु बुढ़ापा हैं मिट जाता, तब ही अमर काया को पाता,अमर शब्द जो हुदे बसाता, किसी ने इसकी महिमा न जानी, अमर मूल में कही बखानी, अमर मूल का कहूँ विचार, अमर मूल है सब का सार,अमर मूल समझे बिना, डूब रहा संसार,अमर मूल निजगंत है,कहीं कभीर बिचारी,समझो धर्म तुम्हे समझाओ, अमर मूल का भेद बताओ, नाम ही अमर कभीर कहावे, बिन अक्षर जग डूबा जावे,तब धर्मदास ने कहा, धर्मदास की विंती सुन लो, फूल चूक सब भी,बुखशमा कर दो, अमर भेद गुरुदेव बताओ, अमरित पिला के प्यास बुझाओ,मुक्ति दाता किरपा करिये, अमर मूल को स्वामी कहिये, संदी भेद कहो निसार, यही ग्रंथ है बहुत अपार,अलग अलग मुझे को समझाओ, मेरे मन का संशे मिटाओ,मेरा प्रेम तुमी से लगा है, अमरित वचन की अब इच्छा है, अमरित नाम कबीर है प्यारा, उसको पा कर हो निस्तारा,तब सद्गुरु ने कहा विचात, सचे ज्यान का कहो मैं साथ, पहले सुनो तुम इसका लेखा, बाद में नारियल का लेखा,यह प्रसाद तुम से कहता, इतनी बात में जीव उबरता, पहले शब्द विदेह है आरा, पीछे ये त्रिलोग पहलाया, शब्द का नाम लोग है भाई, नि अक्षर में रहा समाई,नि अक्षर का पर्चे जिसको तब सत लोग मिलेगा उसको जीवित ही वै लोग,उसको पावे सार शब्द में जो समावे, अमर शब्द को ही पहचान, अम्बू दीप उसका इस्थान, अम्बू दीप है जिसका नाम, है अतिशोभित वह निजधाम, उसका वर्णन किया न जाता, धर्म सुनो तुम्हे में समझाता,सोला सूर्य हंस का रूप, उरुश की महिमा अमर तनूप, अमर शब्द जो प्राणी पाता, वही शब्द से लोग में जाता, पान परवाना शब्द है सार, हंस इसी से होता पार,अक्षर नाम न कहने योग्य, नि अक्षर तो समाने योग्य,कही कबीर वो मेरा बनता, तब धरमदास ने कहा, नि अक्षर गुरु मुझे बताएं, जिससे हंसा लोग में जाएं, मैं विश्वास करूं गुरु कैसे, ये विचार कित आवे जैसे,तुमने सुनाया है निरगुण को, ए गुरुदेव कहो सगुण को,तब गुरुदेव ने कहा, धरमदास तुम ज्यान की कान, सारी शब्द का सुना है ज्यान, जो हनसारी सियोग ये जाना, उसको सारी शब्द समझाना,धरमदास जो शिष्य पाओ, संबल के सारी शब्द समझाओ, आपके वनश करें उपदेश, ज्यानी को ही दें,संदेश मुरक से कहना नहीं कहें कबीर विचारे ज्ञानी से न छुपाईए यही सत्य है सारेजो ज्ञानी बुद्धि का धीर वही संभाले बस तु गंभीर धर्मदास सुनो ध्यान लगाकर अब कहूं लोगों में समझाकरनाम ने अक्षर है जो सार किया सगुण सारा विस्तार निर्गुण और सगुण है जो भी सार शब्द मेंहैं दोनों ही अमरमूल को जिसने विचारा धर्मदास वही शिष्य हमारा और ग्रंथ जो मैंने सुनाएअमरमूल की सब शाखाए सब ने पत डाल लिपटाए अमरमूल कोई जान न पाए धर्मदास इसको सुन लेनाभन्सों को यही संदेश देना यही संत संदेश कहाताआवागमन को जो है मिटाता वही जीवभव से तर जातानहीं तो जग में वो डूब जाताजो पूछेगा शब्द को वही बचे मजधारेजो अग्यानी न सुने जावे यम के द्वारेतब धरमदास कहते हैं वही भेद बताओ हमकोजिसने उलझाया है जग को गुरुदेव तुमको बलहारसच्चा भेद कहो विचारेतब गुरुदेव ने कहानीर पवन का सुनेनाया लेक सुख तिह दै किया विवेकसच्चा खरा ग्रंथ एक ही हैनीर पवन तो उसमें ही हैइसमें ही सब लिप्टे हुए हैनीर पवन में भटके हुए हैनीर पवन की उत्पत्ती कहें कभीर विचारेजो निजिश्वानशब्द में समाता वह ही हंस हमारेसार शब्द ही पार लगातानहीं माने अमता हो जातागर्ब वास में फिर वो आताजो भी से नहीं अपनाताछतिस नीर पिचासी पवन हैउसे रचे ये सबी भवन हैयह तो वेद काल को दिया नाम को हमने गुप्ति है किया नाम वेद को जिसने पाया वही काल से है बच पायासारी शब्द जो जानते वे ही भव से पारे नहीं तो यमपुर जाएंगे होगा ना उठारेगोरक पवन को साध के मर गए नाम वेद से बनचिती रह गएव्यास ने जोतिश किया विश्वानविचार लगन सोध कर किया विचार नाम सार को चित ना दिया लगन महूरत ने सब लियालगन महूरत में रहे कर्म का खत्रा बनाए भर्म मिटे सद्गुरू मिले तब ही लोग को जाएभाई ब्रह्म ये तब छूटेगा सद्गुरू शब्द चित में रहेगा नाम पान में कहूँ विचार जिससे खुल जाए ब्रह्म की वाडमोह मिटे सत भी तर आवे नाम पान को तब ही पावे तब ही पान परवा ना कहा भक्ति ज्यान है उसकी शाथानाम कोई पार न जावे कैसे फिर वह सादु कहावे पढ़ लो विज्ञा वेद पुरान नाम बिना नहीं है कल्यान पार गुरूही है इस जग में मुक्ति दी है जिनके हाथ में हंसों को सत लोक में लावें भव सागर में हंस न आयावेंचार गुरू संसार में धर्मदास यह अंश मुक्ति राज उनको दिया अटल 42 वन मुशीधर्मदास तुम बुद्धी भीर इसलिए दी मुक्ति वीर तुम जीवों को करना पारदिया संप जगत काराजा चतुर्भुज राय बंके जी वहां विराजे गुरू सहते जीराय बंके जी चतुर्भुज सहते जी हैरान सबको यही छुड़ा दें शब्द की दें पहचानकाल से यहीजीव छुड़ावें शब्द को देकर पार लगावें धर्मदास यह बेआलिश वंश यह सब है निज पुरुष के अंश इनको सौंपें जीव का भार यह जीवों को कर दें पार इन्हें छोड़के जो कोई जावें जन जन में धक्का खावें वंश बेआलिश सचे जानोबाकि सब को जूठे मानोनाम भेद जो जानता वही वंश हमारे नहीं तो दुनिया बहुत है डूब रहा संसारेनाम भेद जो जानता वही वंश हमारे नहीं तो दुनिया बहुत है डूब रहा संसारेधर्म दास में कहूं विचार इस विदि से ये तर संसारकाल कठिन है बड़ा अपार जो सिस्ती का करे संहार उसको कोई समझ ना पावेकाल का ही सुमिरन बस गावे दुख दे कर यहां काल रुलावेशब्द के आगे शीष चुकावे नाम गुप्त है बड़ा अनमोलधर्म दास तुम से दिया खोल जो ये नाम समालेके लिखता वह भव सागर से है तरता तुमको जो दियाउपदेस दो हंसों को वही के संदेश जिसपर ज्ञान का प्रकाश होतावही जीव मुक्ति को पाता शब्द में कहा हुआ हुआ है ठीककिरपा कर दो जीवन मुक्ति मुझे समझा दो जीवन मुक्तिमुक्ति कैसे जाने लोग बेद कैसे पहचाने यह सब भी मुझे समझाओ मेरे मन का संशे मिटाओ तब गुरुदेव ने कहाधर्मदास तुमको समझाओ वह निज भेद तुमें बतलाओ उग्र ज्यान जिसमें भी होता मुक्ति भेद को वह ही पाताअब मैं कहूँ जान उपदेश अपने हिरदे करो प्रवेश अमर नाम को जब कोई रटता मुक्ति को निष्चे ही पाताजहां तक ये जिव्या है जाती वहां तक सब माया है पाती अकथ नाम जो कहा ना जाता हर हिरदे में हर पल रहतानाथ शब्द का जो उच्चार उसी से अकशर का विस्तार अकशर से उपजी ये माया संशे में हुई सबकी कायातब ही शब्द सुरत मायामन लाया मन इस थर तो नहीं है माया इस तिर घटमन लहर समान मुफ्त रूप की तब पहचान वही जीव हमारा हो जाएकर्म काट के पार उतर जाए जो इस शब्द को मन से पकड़ ले आवा गमन से फंद चुड़ा ले सीखे पड़े काम नहीं आवेकर्मी जीव न मुफ्ती पावे ज्ञान प्रकाश जहां भी होता उसके हिरदे मोह न रहता जैसे सूरज बादल होते ऐसे ही ज्ञान वमोह होतेजब तक मोह दूर न जावे तब तक नाम नहर दे समावे जब तक मन में मोह रहेगा तब तक नहीं ज्ञान प्रकाश दावेबैठेगा जन जन्म का भक्त जो होता तब जाकर कही नाम को पाताकोटी जन्म जो भक्ती करता अमर मूल को तब ही जानताअमर मूल का भीद जो पावे वै ही विजय हंस कहलावेदर्म दास कहे जै जै कारसद्गुरु बचन जाओं बलिहार जैसे भी हो वे कल्यान वही विधी दो कृपा निधानमुझे कहो पान परवान और नारियल की पहचान पान परवाना कहां से हुआ और कहां से नारियल हुआतब दुरु ने समझाया अमर मूल से पान बनाया साथी बीज नहीं कोई पाया इसका बीज नहीं कोई होताशब्द में ही यह पैदा होता उपजा तभी पान परवान जिससे अन्स कहो निर्वान नारियल तो है धर्म का मानइसको दिया तुम्हारीरहादजीव के बदले नारियल दियाअन्स को छुडाधर्म से लियानारियल पान प्रसाद कीजोडीसार शब्द वह नारियलमोरी जो नारियलको प्रसाद पावेजन्म मरण कोपाप चुडावेपान परवान जोकोई पावेदेख छोड़ सत्लोक को जावे काल से पंद तब मिट जावे सत्लोक में जाके समावेऐसी भक्ती जीव जो करता भक्ती बिन वेह नहीं उतरतातब धर्मदास ने कहा धर्मदास ये बिंती करता हे सद्गुरु बलिहारी जातानारियल पान प्रसाद बताया हमने भेद नहीं है पायामुझको वेह सब भेद बताओ मेरे मन का संशे मिटाओतब गुर्देव ने कहा नारियल भेद पान परवान धर्मदास सुनो बुद्धी मानधर्मदास जब सेवा की थी कथा कहूं समझा करेंतब की धर्मदास सुनो धर्म की आदी मिटी जीव की तब बकवा दीसेवा के वश प्रभू हो गए तीन लोग भव सागर दे गएमान सरोवर उसको दे दिया इस ती देख बड़ा सुख है कियाधर्मराज ने उसे गस लिया तब प्रभू ने शाप दे दियातीन लोग के जीवों को खाओ तब ही पेट अपना भर पाओतीन लोग में जीव जो होंगे धर्मराज को वे ही होंगेतब ही नारियल बदला है दिया जीव को छुडा काल से है लियामैं भक्ती की महिमा कहता बिन भक्ती नहीं काल भागतानायल पान शब्द है नौका भक्ती प्रवान और कहूं चौकातब धर्मराज ने कहाभक्ती प्रवान को आप बता में कौन इसी भक्ती से मुफ्ती पावेतुम तो नायक हो हनसों के पुरुश पुरा तंहिती जीवों केभक्ति अंग बताओ मुझको जावे जिससे जीव लोक कोदर्म दास सुन भक्ति विचार जिससे उतर जाएं भव पारपहले पान परवाना पावे साधन की सेवा मन लगावेसार शब्द हिरदे में समावे अक्षर भीद कोई जन पावेअमर वस्त को गुप्ति ही रखना ज्यानी होए उसी से कहनाशब्द रूप नहीं अक्षर जाना वह हंसा सत्लोक कमानाजिसके हिरदे ज्यान ये होता अमर मूल को वो ही समझताज्यान पूरा होवे जिस घट पान नारियल भगती होबिन ज्यान के न भेद पावे पड़ो गुण्या शक्ती होअमर मूल यह गंत है तुम सुनना मन लगाए केजन्मों के सर पाप कट जाएं अमर लोक मेंजाए के इस विद्ध से साधू बने सुन लो धर्म सुझानअमर मूल बिन कुछ नहीं कहें कभीर बखानइति श्री अमर मूल ग्रंथ तथम निश्राम जै गुरुदेव