ĐĂNG NHẬP BẰNG MÃ QR Sử dụng ứng dụng NCT để quét mã QR Hướng dẫn quét mã
HOẶC Đăng nhập bằng mật khẩu
Vui lòng chọn “Xác nhận” trên ứng dụng NCT của bạn để hoàn thành việc đăng nhập
  • 1. Mở ứng dụng NCT
  • 2. Đăng nhập tài khoản NCT
  • 3. Chọn biểu tượng mã QR ở phía trên góc phải
  • 4. Tiến hành quét mã QR
Tiếp tục đăng nhập bằng mã QR
*Bạn đang ở web phiên bản desktop. Quay lại phiên bản dành cho mobilex
Tự động chuyển bài
Vui lòng đăng nhập trước khi thêm vào playlist!
Thêm bài hát vào playlist thành công

Thêm bài hát này vào danh sách Playlist

Bài hát aram mool do ca sĩ Bijender Chauhan thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat aram mool - Bijender Chauhan ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Aram Mool chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
Ca khúc Aram Mool do ca sĩ Bijender Chauhan thể hiện, thuộc thể loại Thể Loại Khác. Các bạn có thể nghe, download (tải nhạc) bài hát aram mool mp3, playlist/album, MV/Video aram mool miễn phí tại NhacCuaTui.com.

Lời bài hát: Aram Mool

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

आदि अदली, अजर अचिन्त, उरुष मुरेंद्र, करुणामे, कबीर, सुरती योग, संतायन, धनी धर्मदास, चूरामनी नाम, सुधर्शन नाम, कुलपती नाम, प्रबोध गुरुबाला पीर, केवल नाम, अमोल नाम, सुरती सनेही नाम, हक नाम, पाक नाम, प्रकट ना
नाम, धीरज नाम, उग्र नाम, दया नाम की वंश, प्यालीस की दया, आईए, अमर मूल शिबोध सागर आरम करें, धर्मदास विनती करें, ए गुरुप पानि धाने, मित्यु गुढापा मिटा दो, दे दो पद निर्वाने,
तीन लोग में सब मरें, अमर नहीं है कोई, इसे कौन जीतेगा, निश्दिन संशैमोएं,
जग के जीव दुखी हैं, सुन लो हे करतारें,
किरपा करके दास पे मिटाओं कष्ट अपारें, तब सद्गुरु ने कहा, धर्मदास मुफ्ती आधेन, तुम वेह कथा सुनो प्रवीन,
जो चित में प्रभु नाम बसाता, मृत्यु बुढ़ापा हैं मिट जाता, तब ही अमर काया को पाता,
अमर शब्द जो हुदे बसाता, किसी ने इसकी महिमा न जानी, अमर मूल में कही बखानी, अमर मूल का कहूँ विचार, अमर मूल है सब का सार,
अमर मूल समझे बिना, डूब रहा संसार,
अमर मूल निजगंत है,
कहीं कभीर बिचारी,
समझो धर्म तुम्हे समझाओ, अमर मूल का भेद बताओ, नाम ही अमर कभीर कहावे, बिन अक्षर जग डूबा जावे,
तब धर्मदास ने कहा, धर्मदास की विंती सुन लो, फूल चूक सब भी,
बुखशमा कर दो, अमर भेद गुरुदेव बताओ, अमरित पिला के प्यास बुझाओ,
मुक्ति दाता किरपा करिये, अमर मूल को स्वामी कहिये, संदी भेद कहो निसार, यही ग्रंथ है बहुत अपार,
अलग अलग मुझे को समझाओ, मेरे मन का संशे मिटाओ,
मेरा प्रेम तुमी से लगा है, अमरित वचन की अब इच्छा है, अमरित नाम कबीर है प्यारा, उसको पा कर हो निस्तारा,
तब सद्गुरु ने कहा विचात, सचे ज्यान का कहो मैं साथ, पहले सुनो तुम इसका लेखा, बाद में नारियल का लेखा,
यह प्रसाद तुम से कहता, इतनी बात में जीव उबरता, पहले शब्द विदेह है आरा, पीछे ये त्रिलोग पहलाया, शब्द का नाम लोग है भाई, नि अक्षर में रहा समाई,
नि अक्षर का पर्चे जिसको तब सत लोग मिलेगा उसको जीवित ही वै लोग,
उसको पावे सार शब्द में जो समावे, अमर शब्द को ही पहचान, अम्बू दीप उसका इस्थान, अम्बू दीप है जिसका नाम, है अतिशोभित वह निजधाम, उसका वर्णन किया न जाता, धर्म सुनो तुम्हे में समझाता,
सोला सूर्य हंस का रूप, उरुश की महिमा अमर तनूप, अमर शब्द जो प्राणी पाता, वही शब्द से लोग में जाता, पान परवाना शब्द है सार, हंस इसी से होता पार,
अक्षर नाम न कहने योग्य, नि अक्षर तो समाने योग्य,
कही कबीर वो मेरा बनता, तब धरमदास ने कहा, नि अक्षर गुरु मुझे बताएं, जिससे हंसा लोग में जाएं, मैं विश्वास करूं गुरु कैसे, ये विचार कित आवे जैसे,
तुमने सुनाया है निरगुण को, ए गुरुदेव कहो सगुण को,
तब गुरुदेव ने कहा, धरमदास तुम ज्यान की कान, सारी शब्द का सुना है ज्यान, जो हनसारी सियोग ये जाना, उसको सारी शब्द समझाना,
धरमदास जो शिष्य पाओ, संबल के सारी शब्द समझाओ, आपके वनश करें उपदेश, ज्यानी को ही दें,
संदेश मुरक से कहना नहीं कहें कबीर विचारे ज्ञानी से न छुपाईए यही सत्य है सारे
जो ज्ञानी बुद्धि का धीर वही संभाले बस तु गंभीर धर्मदास सुनो ध्यान लगाकर अब कहूं लोगों में समझाकर
नाम ने अक्षर है जो सार किया सगुण सारा विस्तार निर्गुण और सगुण है जो भी सार शब्द में
हैं दोनों ही अमरमूल को जिसने विचारा धर्मदास वही शिष्य हमारा और ग्रंथ जो मैंने सुनाए
अमरमूल की सब शाखाए सब ने पत डाल लिपटाए अमरमूल कोई जान न पाए धर्मदास इसको सुन लेना
भन्सों को यही संदेश देना यही संत संदेश कहाता
आवागमन को जो है मिटाता वही जीवभव से तर जाता
नहीं तो जग में वो डूब जाता
जो पूछेगा शब्द को वही बचे मजधारे
जो अग्यानी न सुने जावे यम के द्वारे
तब धरमदास कहते हैं वही भेद बताओ हमको
जिसने उलझाया है जग को गुरुदेव तुमको बलहार
सच्चा भेद कहो विचारे
तब गुरुदेव ने कहा
नीर पवन का सुने
नाया लेक सुख तिह दै किया विवेक
सच्चा खरा ग्रंथ एक ही है
नीर पवन तो उसमें ही है
इसमें ही सब लिप्टे हुए है
नीर पवन में भटके हुए है
नीर पवन की उत्पत्ती कहें कभीर विचारे
जो निजिश्वान
शब्द में समाता वह ही हंस हमारे
सार शब्द ही पार लगाता
नहीं माने अमता हो जाता
गर्ब वास में फिर वो आता
जो भी से नहीं अपनाता
छतिस नीर पिचासी पवन है
उसे रचे ये सबी भवन है
यह तो वेद काल को दिया नाम को हमने गुप्ति है किया नाम वेद को जिसने पाया वही काल से है बच पाया
सारी शब्द जो जानते वे ही भव से पारे नहीं तो यमपुर जाएंगे होगा ना उठारे
गोरक पवन को साध के मर गए नाम वेद से बनचिती रह गए
व्यास ने जोतिश किया विश्वान
विचार लगन सोध कर किया विचार नाम सार को चित ना दिया लगन महूरत ने सब लिया
लगन महूरत में रहे कर्म का खत्रा बनाए भर्म मिटे सद्गुरू मिले तब ही लोग को जाए
भाई ब्रह्म ये तब छूटेगा सद्गुरू शब्द चित में रहेगा नाम पान में कहूँ विचार जिससे खुल जाए ब्रह्म की वाड
मोह मिटे सत भी तर आवे नाम पान को तब ही पावे तब ही पान परवा ना कहा भक्ति ज्यान है उसकी शाथा
नाम कोई पार न जावे कैसे फिर वह सादु कहावे पढ़ लो विज्ञा वेद पुरान नाम बिना नहीं है कल्यान पार गुरू
ही है इस जग में मुक्ति दी है जिनके हाथ में हंसों को सत लोक में लावें भव सागर में हंस न आयावें
चार गुरू संसार में धर्मदास यह अंश मुक्ति राज उनको दिया अटल 42 वन मुशी
धर्मदास तुम बुद्धी भीर इसलिए दी मुक्ति वीर तुम जीवों को करना पार
दिया संप जगत का
राजा चतुर्भुज राय बंके जी वहां विराजे गुरू सहते जी
राय बंके जी चतुर्भुज सहते जी हैरान सबको यही छुड़ा दें शब्द की दें पहचान
काल से यही
जीव छुड़ावें शब्द को देकर पार लगावें धर्मदास यह बेआलिश वंश यह सब है निज पुरुष के अंश इनको सौंपें जीव का भार यह जीवों को कर दें पार इन्हें छोड़के जो कोई जावें जन जन में धक्का खावें वंश बेआलिश सचे जानो
बाकि सब को जूठे मानो
नाम भेद जो जानता वही वंश हमारे नहीं तो दुनिया बहुत है डूब रहा संसारे
नाम भेद जो जानता वही वंश हमारे नहीं तो दुनिया बहुत है डूब रहा संसारे
धर्म दास में कहूं विचार इस विदि से ये तर संसार
काल कठिन है बड़ा अपार जो सिस्ती का करे संहार उसको कोई समझ ना पावे
काल का ही सुमिरन बस गावे दुख दे कर यहां काल रुलावे
शब्द के आगे शीष चुकावे नाम गुप्त है बड़ा अनमोल
धर्म दास तुम से दिया खोल जो ये नाम समाले
के लिखता वह भव सागर से है तरता तुमको जो दिया
उपदेस दो हंसों को वही के संदेश जिसपर ज्ञान का प्रकाश होता
वही जीव मुक्ति को पाता शब्द में कहा हुआ हुआ है ठीक
किरपा कर दो जीवन मुक्ति मुझे समझा दो जीवन मुक्ति
मुक्ति कैसे जाने लोग बेद कैसे पहचाने यह सब भी मुझे समझाओ मेरे मन का संशे मिटाओ तब गुरुदेव ने कहा
धर्मदास तुमको समझाओ वह निज भेद तुमें बतलाओ उग्र ज्यान जिसमें भी होता मुक्ति भेद को वह ही पाता
अब मैं कहूँ जान उपदेश अपने हिरदे करो प्रवेश अमर नाम को जब कोई रटता मुक्ति को निष्चे ही पाता
जहां तक ये जिव्या है जाती वहां तक सब माया है पाती अकथ नाम जो कहा ना जाता हर हिरदे में हर पल रहता
नाथ शब्द का जो उच्चार उसी से अकशर का विस्तार अकशर से उपजी ये माया संशे में हुई सबकी काया
तब ही शब्द सुरत माया
मन लाया मन इस थर तो नहीं है माया इस तिर घटमन लहर समान मुफ्त रूप की तब पहचान वही जीव हमारा हो जाए
कर्म काट के पार उतर जाए जो इस शब्द को मन से पकड़ ले आवा गमन से फंद चुड़ा ले सीखे पड़े काम नहीं आवे
कर्मी जीव न मुफ्ती पावे ज्ञान प्रकाश जहां भी होता उसके हिरदे मोह न रहता जैसे सूरज बादल होते ऐसे ही ज्ञान वमोह होते
जब तक मोह दूर न जावे तब तक नाम नहर दे समावे जब तक मन में मोह रहेगा तब तक नहीं ज्ञान प्रकाश दावे
बैठेगा जन जन्म का भक्त जो होता तब जाकर कही नाम को पाता
कोटी जन्म जो भक्ती करता अमर मूल को तब ही जानता
अमर मूल का भीद जो पावे वै ही विजय हंस कहलावे
दर्म दास कहे जै जै कार
सद्गुरु बचन जाओं बलिहार जैसे भी हो वे कल्यान वही विधी दो कृपा निधान
मुझे कहो पान परवान और नारियल की पहचान पान परवाना कहां से हुआ और कहां से नारियल हुआ
तब दुरु ने समझाया अमर मूल से पान बनाया साथी बीज नहीं कोई पाया इसका बीज नहीं कोई होता
शब्द में ही यह पैदा होता उपजा तभी पान परवान जिससे अन्स कहो निर्वान नारियल तो है धर्म का मान
इसको दिया तुम्हारी
रहाद
जीव के बदले नारियल दिया
अन्स को छुडा
धर्म से लिया
नारियल पान प्रसाद की
जोडी
सार शब्द वह नारियल
मोरी जो नारियल
को प्रसाद पावे
जन्म मरण को
पाप चुडावे
पान परवान जो
कोई पावे
देख छोड़ सत्लोक को जावे काल से पंद तब मिट जावे सत्लोक में जाके समावे
ऐसी भक्ती जीव जो करता भक्ती बिन वेह नहीं उतरता
तब धर्मदास ने कहा धर्मदास ये बिंती करता हे सद्गुरु बलिहारी जाता
नारियल पान प्रसाद बताया हमने भेद नहीं है पाया
मुझको वेह सब भेद बताओ मेरे मन का संशे मिटाओ
तब गुर्देव ने कहा नारियल भेद पान परवान धर्मदास सुनो बुद्धी मान
धर्मदास जब सेवा की थी कथा कहूं समझा करें
तब की धर्मदास सुनो धर्म की आदी मिटी जीव की तब बकवा दी
सेवा के वश प्रभू हो गए तीन लोग भव सागर दे गए
मान सरोवर उसको दे दिया इस ती देख बड़ा सुख है किया
धर्मराज ने उसे गस लिया तब प्रभू ने शाप दे दिया
तीन लोग के जीवों को खाओ तब ही पेट अपना भर पाओ
तीन लोग में जीव जो होंगे धर्मराज को वे ही होंगे
तब ही नारियल बदला है दिया जीव को छुडा काल से है लिया
मैं भक्ती की महिमा कहता बिन भक्ती नहीं काल भागता
नायल पान शब्द है नौका भक्ती प्रवान और कहूं चौका
तब धर्मराज ने कहा
भक्ती प्रवान को आप बता में कौन इसी भक्ती से मुफ्ती पावे
तुम तो नायक हो हनसों के पुरुश पुरा तंहिती जीवों के
भक्ति अंग बताओ मुझको जावे जिससे जीव लोक को
दर्म दास सुन भक्ति विचार जिससे उतर जाएं भव पार
पहले पान परवाना पावे साधन की सेवा मन लगावे
सार शब्द हिरदे में समावे अक्षर भीद कोई जन पावे
अमर वस्त को गुप्ति ही रखना ज्यानी होए उसी से कहना
शब्द रूप नहीं अक्षर जाना वह हंसा सत्लोक कमाना
जिसके हिरदे ज्यान ये होता अमर मूल को वो ही समझता
ज्यान पूरा होवे जिस घट पान नारियल भगती हो
बिन ज्यान के न भेद पावे पड़ो गुण्या शक्ती हो
अमर मूल यह गंत है तुम सुनना मन लगाए के
जन्मों के सर पाप कट जाएं अमर लोक में
जाए के इस विद्ध से साधू बने सुन लो धर्म सुझान
अमर मूल बिन कुछ नहीं कहें कभीर बखान
इति श्री अमर मूल ग्रंथ तथम निश्राम जै गुरुदेव

Đang tải...
Đang tải...
Đang tải...
Đang tải...