हन्स वाहिनी शारदा नमन तुम्हे सौबार
ज्यान दाईनी गायन का खोल दो भंडार
प्रति जी को वंदना करू नवा के शीष
हाथ धरो मिर शीष पर मुझे को दो आशीष
कमल नयन महलक्ष्मी भरो मिरे बंडार
नमन करू श्री चर्णों में
नात हजारों बात
शिन्महेश का करके मन में ध्यार अन्पुन्ना माता का करती हुआ क्या
प्रित्वी मारादास पर क्रिपा करो विशेश बिना धया के आपकी
कुछ भी नहीं है शेश
प्रित्वी के हर जीव पर प्रित्वी का उपकार
प्रित्वी माही बात थी भोजन का उपहार
अन्दाईनी स्वामिनी अन्पुणनानां सबको भोजन बातना
यही तुम्हारा काँ
यही माधया से आपकी पलता है संसान
जय अन्पुणनामा जय अन्पुणनामा
तुम हो
अन्कि स्वामिनी अन्पुणनामा
जय सा ब्रह्मणण में कोई और कहां
सान कोमल हिर्दे है आपका जैसे शीतलनीर
तुमसे पलते जीव है
तुमसे पले शरीर
धरती मान दाईनी अन्पुणनाप नमन करे संसार मा तुम दोनों को सात
जय अन्पुणनामा जय अन्पुणनामा किरपा से
मा आपकी भरे रहे भंडाब अन्पुणनाप नमन करे
संसार मा तुम दोनों को सात
जय अन्पुणनामा किरपा से मा आपकी भरे रहे भंडाब नमन करे
संसार मा तुम दोनों को सात जय अन्पुणनामा किरपा से मा
आपकी भरे
रहे भंडाब नमन करे संसार मा तुम दोनों को सात जय अन्पुणनामा
किरपा से मा आपकी भरे रहे भंडाब नमन करे संसार मा
जय
अन्पुणनामा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
अन्पुणनामा!
! !
अन्पुणनामा! !
जन जीवन पर दया लुकाए!
एक बार भोले शिवशंकर,
पारवती से भोले हसकत,
जीवन माया,
भोजन माया,
माया में संसार समाया,
जीवन का ना कोई अर्थ है,
जीवन व्यर्त है, अन्ग व्यर्त है,
शिवशंकर की बाते सुनकत,
पारवती जी बोली चिढ़कत, अन्ग बिना है जीवन सूना,
जीवन फलपोड़ा,
जीवन पाड़ा, जीवन पाड़ा,
जीवन पाड़ा,
जीवन पाड़ा,
जीवन पाड़ा, जीवन पाड़ा, जीवन पाड़ा, जीवन पाड़ा,
पारवती हो गई नास,
हरे खेत वीरान हो गए,
जैसे की शमशान हो गए,
हो गई सारे पित्वी बंजर,
लगता था दुख दाए मंजर,
धूक से तडब उठा जग सारा,
पश्वों को मिलता ना चारा,
पक्षी तरस रहे दाने को,
तडब रहे सब व्यापल होकट,
भूक प्यास से पागल होकट,
देख रहे मोत सामने,
हाँखार मचा दुनिया में,
मोत का नाच दिखा दुनिया में,
मच गया भारी हाँखार,
देवी देवता घबराई से, लगने लगे सब मुरझाई से,
जीवन पर संकत मंदराई,
कोई राह नसर ना आओगे,
सोच विचार करें सब मिलकर,
राह निकालेंगे,
शिवशंकर,
सब शिवजी के पास आते हैं,
साद संकत बतलाते हैं,
पित्थिवी संकत में घिरें,
सुनो हे भोले नाथ,
हर संकत का हर छुपा नाथ अपके पास,
बिंति सुनो हे योधडडानी,
पित्थिवी पर ना भोजन पानी,
बहाल है सबका,
आनेवाला काल है सबका,
देवी देवता है बहाल,
शिवजी भी थे भूखे बैठे,
लेकिन सबसे कहते कैसे,
मेरे कारण हुआ है सब ये,
भोले मन में पच्चताते हैं, सबको
धीरज बनधवाते हैं, आया संकत ढल जाएगा, कश्णो का
सूरज ढल जाएगा,
वो
निश्चित स्वर्ग को जाओ,
यर्थिन चिंता मन में आओ, जल्दी होगा कश्णदान,
कहते हैं शंकर भगवान,
मन में ध्यान लगाया शिवने,
ध्यान मघन में पाया शिवने,
पारवती काशी के अंदर,
शिवशंकर जी वहाँ सिधाय,
चल करके
काशी में आय, भूख से हाल हुआ बेहाल,
ख्रोध आ रहा उन्हें स्वयं पर, मन में
सोच रहें शिवशंकर, अन्न को माया ना बतलाता,
पारवती को ग्रोध नाता,
गल्ती स्वयं की थी ये हमारी,
गंड भुगत रही पिथ्वी सारी,
अन्न विहन हो गई ये धर्ती,
भोले स्वयं से बतलाते हैं,
शने शने चलते जाते हैं,
अन्न है जीवन माया नहीं है,
खड़ी है मान पूर्णा,
अक्ष पात्र निहार, भूखे प्यासे ना पूर्णा,
पात्र निहार,
भूखे प्यासे आ गए वहाँ पे भोले नाथ,
भोले नाथ बोले म्रदुवाणी,
क्रोध को छोड़ दो हे कल्याणी,
बिना अन्न के चले ना जीवन,
अन्न को मैंने माया कहकर,
अन्न को मैंने माया कहकर,
मन में बड़ा पच्चताया कहकर,
हे कल्याणी, क्रोध त्याग दो,
मुझसे
अपना ख्षोब त्याग दो,
आया हूं मैं भीक्षुक बनकर,
अब तुम क्रोध करो ना मुझे पर,
मांग रहा मैं अन्न का दान, हे करिदान करो कल्याण,
अक्षे पात्र है हाथ तुमारे,
खड़ा है भिक्षुक द्वारे तुमारे,
अन्न का दान मांगने आया,
भूख बिटा दो हे महमाया,
अन्न पूर्णा तुम कहलाओ,
तुम ही जग पालक कहलाओ,
अक्षे पात्र से भोजन दे दो, मलते भूखो जीवन दे दो,
ना जीवन ना मायान है, हर जीवन की छायान है,
अन्न के बिना कटन है जीवन,
अन्न से मिलता सबको भोजन,
अन्न का दान कर रही माता, जग कल्यान कर रही माता,
भिक्षा दे रही शिवशंकर को,
अन्न पूर्णा मा मुस्काई,
धरती पर हर्यान आई, खिल गए सारे खेत खलियान,
धर्दे गए संकट आगई जान, हरे खेत खलियान हो गए,
लहराते धनधान हो गए, पुर्थिवी पर जीवन मुस्काया,
शिवजी की
काशी के अंदत, अन्न पूर्णा का है मंदद,
शिवजी के पात्र माली एकखडी है,
बान की मुद्रा की एकखडी है,
मार्ग शीश के माह के अंदत,
काशी जी के सारे मंदद, दुलहन जैसे सजजाते है,
भूल नगारे बजजाते है, अन्न पूर्णा मा की जैनती,
उच्छव होता धूमधाम से,
अन्न पूर्णा मा के नाम से,
जहां है अन्न पूर्णा मंदद,
वही खड़े हैं भोले शंकत,
मांग रहे है अन का दान,
अन्न पूर्णा से भगवान,
अक्ष पात्र से दान बातती,
जीवन का वर्दान बातती,
अन्न पूर्णा नाम कहाई,
अन्न पूर्णा मा वरदानी,
बात रही है भोजन पानी,
देती है मा सबको निवाला,
जो भी जन कभी काशी चाए,
अन्न पूर्णा के दर्शन पाए,
भोलनात की
काशी के अंदर,
जिस पर
किरपा कर देती है, खुशियों से घर भर देती है,
भरे रहे भंडार हमेशा,
सिल जाती है भाग की रेखा,
अन्न पूर्णा अन्की दाता,
खेतों की है भाग्य विधाता,
सारे खेत खली हाल है मा से,
जीवन का वरदान है मा से,
अक्ख देव पे रखना, रिंकी गाए महिमत तुम्हारी,
मा
तिलाश है शरण तुम्हारी,
अन्न पूर्णा मा तुम्ही जीवन का वरदान,
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