अहदिगत का परदा रुख से करते हैं
आहदिगत का परदा रुख से कब उठाता हैं
वारिस आदम तुझे ये दिल बुलाता है
आजा अभ तो आजा तक से किबरिया
सही अदा की सदा घोर से सुन जरा
है लहद से बुलाती तुझे
आ मेरे लाल रोजा मेरा बना
है सताती गे उम्मत मुझे
मुंकजर हु लाल मेरे कब तु आता है
कब मेरी तुर्बत पर रोजा तु बनाता है
आजा अभ तो आजा तक से किबरिया
है परेशा जहाँ जाए तुझ बिन कहाँ
आसरा कौन है बिन तेरे
अब तो आजा ही छेहरा दिखला ही
आबरू रखले मौला मेरे
आरजु मन्दूर हो मेरी ये चाहता हूँ
राहों पे पलके तेरी अपने बिछाता हूँ
आजा अभ तो आजा तक से किबरिया
दो जहां में आखरी हुझजत खुदा की तू
काम उसके इसलिए तू ही चलाता है
आजा अभ तो आजा तक से किबरिया
आजा अभ तो आजा तक से किबरिया