जामिला क्या खोया मैं जानू
जारके भी क्यों अन्जाम बनू
तेरे आगे कुछ बोल भी ना पाओ
वक्सबना मैं बोल ना पाओ
हाँ क्या था कसुर मेरा बता
तू ही सच थी या मैं था धुका
क्या हर एक लमखा था छूटा तेरा
या सच में ही था अन्धेरा मेरा
मैं तो था वफा दर्दिल से खुला
तू थी साया पर रोष्णी से भुला
छोटी सी बात को दुफान बाना दिया
मेरा खामोशी का मतलब तूने क्या लिया
मैंने तो सिर्फ प्यास चाहा था
पर तूने हर बार इन्जाम दिया था
टूटी थी साहस से सूल लगती थी बाते
पर तूने कभी भी कुछ महसूस न किया
हाँ, खुद से लरता रहा तूझसे कुछ न कहा
हर बार तेरी हर बात को छुच्चाब सहा
अब पुछता हुँ क्या था ये फसाना
तेरा प्यार था ये पस एक पहाना
क्या मिला, क्या
खोया मैं जानू
जान के भी क्यों अनजान बनू,
तेरी आगे कुछ पोल भी न पाऊँ,
वक्सपना मैं गुन न पाऊँ
तुही तो थी जो हर बात में बदली,
छुपी हुई थी सारी,
बाते छुटों से भरी,
मैं ता बेवाकुफ तुझ में ढूणा था कुदा
और तुझ थी जो हर मोर पे धोका दिया,
अब तु रोया करे लोगों के सामने पर,
असली कहानी तो छुपी है,
काफी अंधेरों में सबको लगता,
मैं हुँ वो शक्स बुरा,
पर तुही तो थी जो कभी दिया,
मुझे धोका,
मैं छुप रहा क्योंकि प्यार था,
पर तु छुप छूरी जो दिल के पार था,
तेरे हर लवस में था एक नाटक,
और मेरी हर खुशी बना दिया,
तुने खतर नाग,
अब यादे ही है जो छुबती है रात भड,
तेरे भी ना मैं अब तो रोता हूँ पर राम बड,
तू थी छूर,
पर मैं भी पागल था,
अब दिल से नाम तेरा मैं मिटा चुका हूँ सारा,
ख्या मिला, क्या
खुया मैं जानू, जान के भी क्यो अन्जान बनू,
तेरी आगे कुछ बोल भी ना पाऊ,
अक संपना मैं दून ना पाऊ,