अब किसको सुनाएंगे इस दर्द का अफ़जाना
समझे थे जिसे अपना तो वहाँ बेजाना
अब किसको सुनाएंगे इस दर्द का अफ़जाना
दिन रात खड़क से हैं जिसे है नमर से है
दिन रात खड़क से हैं
दिन रात खड़क से हैं जिसे है नमर से है
नाबान थे साए को पाने की जमना की
पत्थर के सनम भूजे इस दिल का कहाना
समझे थे जिसे अपना वो गए
आया के गालों अब जिसको सुनाएंगे
इस दर्द का अफ़जाना
खामोश गुई शम्मा
सियादों का धुआँ फैला
जलने तो कहां जाए
भटका हुआ फर्वाना
भर्वाद महचत का इतना सा है अफ़जाना
अब जिसको सुनाएंगे
इस दर्द का अफ़जाना
शम्दे थे जिसे अपना वो गए