अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
कह कभीर सुनो रे संतो खेद ही करो निबेरा
कह कभीर सुनो रे संतो खेद ही करो निबेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
अब की बार बक्ष बंदे का बोहुर न भावजल फेरा
कह कभीर सुनो रे
संतो खेत ही करो निबेरा कह कभीर सुनो रे संतो खेत ही करो निबेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
अब की बार बक्ष बन देखो बोहरे न भोजल फेरा
किसे तपस्वी ने सोवरे तपस्या कीती ता उसनु आवाज आई
तपस्वी तेरे ते बड़े तुठे हाँ बड़े परसान हाँ तेनु बक्षिश दिती
पर तपस्वी दे मानवीच हंकार आगिया केन लगा माराज मैं सोवरे ताप कीता है सोवरे
मैंनु सोवरे आंदी तपस्या दाई फाल चाहिए
हुन कोण तपस्वी नु समझावे भी जे नरंकार बक्षिश करे ता पामे लाख दी कारदवे
जे मालक मेहर करे बक्षिश करे ता लाख दी पामे होजे ते जे हिसाब करिये ता काखदा भी हुन्दा है
जिस पत्थर दी सिला ते बैके तपस्वी ने ताप कीता सी तो सिला रूप तार के खलोगे
आख्या तपस्वी जी परमेश्वर नाल लेखे करन लगेओ पहला मेरा ता लेखा नवेड़ देओ
तपस्वी कहन लगा तेरे मेरा कादा लेखा कहन लगी जिस सौ वरेयां दी तपस्या दाफाल नरंकार तो मांग रहे हैं
वो तुसी मेरे उपर बैठ के कीता है करन सिद्धान्त दे मताविक हुण मैं त्वाडे सिर्दे आउनिया
ते पहला मेनु तुसी सौ वरे चुको ते फिर मेरा लेखा नवेड़ो फिर राब नाल करियो
जद वो एक गाल सुनी ता तपस्वी दा सारा अहंकार चकना चूर हो गया अखां भारे आईयां ते कहें लगा
गुरु की बानी दा एक एक अखर साच है भाई जे उस विच लिखे लेखे कते ना छूटी है
खिन खिन भुलन हार्य बक्षिया ना आर्व बक्ष ले नानक पार उतार तो सचमूच अशिध आवना लेकर नहीं कर सकते
ओथे तो एक अरदास ही कम होंगी है कि नरंकार चंगे हां में माड़े हां जहों जेवी हां आप जीवी हां
तुसी बक्ष दो एथे भी भगत कबीर जी अरदास का रिहन हे वाई गुरू तुसी किरपा करो अपने करम की गर्त मैं क्या जानू बाबारे
तुसी किरपा करो अब की बार बक्ष बंदे को बहुर ना भावजल फेरा क्योंकि जदो धर्मराज ने लेखा मंगने ता फिर उते बक्ष शी पार उतार सकली है
धर्मराए जाब लेखा मांगे बाकी निकसी भारी
तुसी किरपा करो अब की गर्त मैं क्योंकि जदो धर्मराज ने लेखा मंगने ता फिर उतार सकली है
धर्मराए जाब लेखा मंगने ता फिर उतार सकली है
धर्मराए जाब लेखा मंगने ता फिर उतार सकली है