एक बाबा की भक्तनी जो लक्षमी जी जहाजगर्से हैं,
उनके चार संताने थी,
तीन लड़कियां और एक लड़कां.
परिवार बहुत खुष था,
लेकिन भगवान को कुछ और ही मनजूर था.
उनका लड़कां भगवान को प्यारा हो गया.
सबने मना किया कि तुझे बेटा नहीं होगा,
आईए वो बाबा मोहनराम के मंदिर मुहमदपूर में अरदास करने गई,
और बाबा की क्रपा से उन्हें एक लड़का पैदा हो गया.
बोलिये दया भगची की जै!
मैं तेरे लिए
राखी लाई हूँ मोहन, बहुत दूर से आई हूँ.
आज
राखी का त्योहार हो आवें बरस दिना में,
आके रखडी बंधाओ ना मोहन,
आके तुम रखडी बंधाओ ना.
तोसे मिलने का रस्ता मोहन जाणूना,
रखडी बंधे बिन आज मानूना.
करके आई हूँ मोहन मैं कराओ आवें बरस दिना में,
योगों योगों से चली रीत हैं मोहन,
भगतों से अपने करते प्रीत हैं.
योगों योगों से चली रीत हैं मोहन,
भगतों से अपने करते प्रीत हैं.
योगों से अपने करते प्रीत हैं.
आवें बरस दिना मैं, आके रखडी बंधाओ ना मोहन,
आके तुम रखडी बंधाओ ना.
तेरे लिए राखी लाई हूँ मोहन,
बहुत दूर से आई हूँ.