आय सर्द हवा, लेकै दर्द हवा,
छत्ती न चीर दी पार गई
मसां जखम भरे थे, करदी फेर खरे थे,
किसे मरदेने मार गई
फूल पत्यां पे फिर ओसिब के जमनी सुरू होगी,
जमनी सुरू होगी
किसे थंड मैं थिर दे आसिक की,
सांस फमनी सुरू होगी,
किसे थंड मैं थिर दे आसिक की,
सांस फमनी सुरू होगी,
एक पेटा देखे बाट के पंछी मुड़के आवेगा,
और पंछी उड़दा उड़दा जाके दूर नगर बस गया,
किसे अनजान की पैड़ दिखे पर छेरा नहीं दिखदा,
आड़े कोई ना कोई तो सबका है वस मेरा नहीं दिखदा,
कोई सरपी सहर मैं आया थे क्या कहे,
कमनी सुरू होगी,
कमनी सुरू होगी,
उच्छी याद है जड़ दी मसाल जिसी में सुक्की पराडी सा,
वो जो अन्दाय नहीं मनैं उसके आण का चाहे दिवाडी सा,
पायाले ये पीड़ खड़ा मैं रमनी सुरू होगी,
रमनी सुरू होगी,
जो सहे चुक्या में पुराने थे,
इब गम नया इजाद होना है,
अरे होसला राख जिपी,
इब बहुत बरबाद होना है,
इब बहुत बरबाद होना है,