पोके बंदना एक दंत की जिन की महिमा जग में महान विगन बिना सक दुख के हरता
करता जग जिन का गुड़गान अन्धी भक्त एक गड़ेस जी जीती गरीबी से परसान बेटा बहु के साथ में रहती
दोनों जग में नी संतान विधवा गड़ेस एक निस दिन पूजा
पूजा करती रखे ध्यान भक्ति में फूस हुए गड़नायक
बोले विधवा से भगवान मांगलू हम से एक वरदान
बोली अन्धी विधवा रोके बात सुनो मेरी स्रीमान
बेटा बहु से पुछके वर मांगूंगी मैं की पानी धान
बात बताई जा बेटा से बोला बेटा ले अर्मान
मांगलू दवलत गड़ेस जी से हो जाएंगे हम घनवान
मन का मतलब समझके माता गई बहु के पास सुनान
गड़ेस जी से क्या वर मांगूंगी समझना आता हूं हैरान
वन्स के खातिर वर मांगलू
ना कोई गुद में संतान बात बहु की समझना आई
गई पड़ोसी के माखान तुम हो अंधी आथ की जोती
मांगो मेरी बात कुमान प्रकट हुए गवरा के लाला
लेके वर कर लो कल्यान बोली अंधी हाथ जोड़के
ए दिन दया लू दया निधान
सोने की पलंग पे खेलता
सोने की पलंग पे खेलता पुत्र देखूं गुड़ी गुड़वान
हस रहे हैं गणपति देवा अंधी की चतुराई जान
बहु को पुत्र धन बेटा को
की ये अंधी को नित्रदान करता भक्ती जो मन से
गुड़ी गड़ेश्ट का सम्मान दूर आपदा सारी होती
फूसी से भी हसे बगवान अभैलाल कभी भोलागी
गीत लिखते वेदों को मान अभैलाल कभी भोलागी
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