हरे काहो, देखो ताने कुछ दिनसे, मुख लटकागे बैठल बादु, अरे काह भोईल..हाँटी होने, हमर अस्य बोले हो..अरे काह भोईल बोलो..काह बोले जी, काह बोले, एको सारी डियालो थाकी तेरा मुहनस्य बोलताने..अहिसे काहे कहतारो, नहीं खिला के देलेका, खाना उना बनी किना आज..हरे बनावा बड़ी भुख लागल बादु..पहले हमार बात सुने, तबे आज खाना मिले..बादु सनी चरेसे, मुहा महा फुला बले, काहे तुखना उना बादु बना बले..हरे बुला हो..बादु सनी चरेसे, मुहा महा फुला बले, काहे तुखना उना बादु बना बले..बुला..अहजु सुते भारे, बहुन कोरो भुखे मारी राजजी..अछा..जो दिकि न बाना, तेरो सोके साडी राजजी..ओहो, करबु दिमाग खराब..दिमाग खराब होता..बनाइबु की ना जाके खाना..ना बनाइब जा..बाकि साब काम राहुर छटपट हो जाला..हो मदे के बेदी जाओर कोई साउराला..अरे ऐसा नहीं है..नाही कोबन हो पहाना, बनाइले ये धान..ऐसे काही तु छोट कोई लेलो हो मान..जात बाने धान, नाही हर के आगारी राजाजी..हर ना बगली, जाती की ना बाना, तेरा साके साडी राजाजी..जाती की ना बाना..अरे की ना यार, पहले भूग लागल बार खाना तो दे..पहले लेके आओ तो बार खाना बना..अब नही छोले जे बहाना पे बहाना, लजी उनना लागे रोजे सुना तड़ो ताना..हर मान हुझाओ, अइसे ही धानी हमसे ना हो खाना राजाजी, अजे बाचन मुनु बाता करे लिया..हाँ तो सुनाओ..हाँ तो सुनाओ..हाँ तो सुनाओ..हाँ तो सुनाओ..